बुधवार, 13 मई 2009

डरते डरते

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बिलकुल मुहाने पर नक्सलवादियों ने बारूदी विस्फोट कर १३ जानें ले ली। इस प्रदेश में ऐसी घटनाएँ नई नही है, नया इसमे यही है की इस बार इस आग की आंच शहरी इलाको में पड़ी है। घटना टिक उस वक्त हुई जब मुख्यमंत्री रमन सिंग नक्सली वारदातों पर नकेल कसने के आला अफसरों को डांट फटकर रहे थे। इस बार का विस्फोट सरकार के सामने ज़्यादा बड़ी चुनोती के रूप में देखा जा रहा है।
नक्सलियों की बदती गतिविधियाँ परेशान कर देने वाली तो है ही, इस तरह की घटनाओ के बाद जैसी राजनीती होती है वह भी कम हैरान कर देने वाली नही है। पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने एक भी ठोस मुद्दा नही उठाया, और अब वह नक्सल मोर्चे पर विफल रहने का आरोप लगते हुवे राज्य सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। असल में नक्सल मुद्दे पर निति को लेकर कांग्रेस ख़ुद भी बिखरी हुई नज़र आती रही है। मध्य प्रदेश के ज़माने में जब कांग्रेस की सरकार थी तब भी नक्सलवाद छत्तीसगढ़ में खूब फला फुला था, इसके तुंरत बाद जब विभक्त छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तब भी नक्सलियों पर प्रभावी अंकुश नही लगाया जा सका। भारतीय जनता पार्टी ने इस समस्या के समाधान के लिए सलवा जुडूम का जो फार्मूला अपनाया उसका भी कोई असर दिखाई नही पड़ता। ना तो हिंसक वारदातों में कोई कमी आई और न ही नाक्सालियो की संख्या में। उल्टे ये बड़ते ही गए। सैकडो ग्रामीण बेघर जरुर कर दिए गए, अब वे बस्तर में नई बस्तर के रहत शिविरों में रह रहे है। ताज्जुब की बात यह है की सलवा जुडूम जैसे बचकाने कार्यक्रम की अगुवाई एक कांग्रेसी नेता कर रहे थे, और तब वे नेता प्रतिपक्ष थे।
अब ताजे विस्फोट के बाद कांग्रेस राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा बंदी कर रही है। सच तो यह है की इस समस्या के समाधान के लिए यदि राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारिया ठीक तरह से नही निभाई तो कांग्रेस ने भी विपक्ष की जिम्मेदारी को ठीक तरह से पुरा नही किया। राजनीती घटनाओ पर की जा रही है, जबकि यह मुद्दों पर होनी चाहिए। इस की तलाश होनी चाहिए की वो कौन के उर्वरक है जिनसे नक्सलवाद हरा भरा होता है। किन मुद्दों के दम पर नक्सलवादी ग्रामीणों के बीच अपनी पैठ बनने में सफल हो रहे है। हल ही में छत्तीसगढ़ में एक डाक्टर की गिरफ्तारी की बड़ी चर्चा रही, यह नक्सलियों का सहयोगी बताया जाता है। सरकार ने नक्सलियों के बड़े नेट वर्क को तोड़ने का दावा किया है। यदि सरकार का दावा सही है तो तालियाँ, ऐसी और गिरफ्तारिया होनी चाहिए। लेकिन मूठ भेद और गिरफ्तारिया तो कानूनी प्रक्रिया है। इस समस्या का समाधान कानूनी नही राजनितिक प्रक्रिया में नज़र आता है। इसके लिए पक्ष विपक्ष से एकजुट राजनीती की उम्मीद हम आम लोग करते है। आम जनता के मुद्दों का समदन जनता के चुने हुवे प्रतिनिधि ही यदि करें, तो नक्सलवादी भला पनपे ही क्यो?

शनिवार, 9 मई 2009

गरम मसाला खाओ, स्वाइन फ्लू भगाओ

सागर। दुनिया भर में दहशत फैला रहे स्वाइन फ्लू को भारत के हर घर की रसोई में रोजाना उपयोग में आने वाले गरम मसाले के एक घटक से ही निपटा जा सकता है।
स्थानीय डा. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर अजय शंकर मिश्रा ने बताया कि गरम मसाले का एक घटक 'स्टार एनाइस' ही वह पदार्थ है, जिससे टेमीफ्लू नामक एण्टी वायरल दवा बनाई जाती है। टेमीफ्लू को स्वाइन फ्लू से निपटने में सबसे ज्यादा कारगर उपचार माना जा रहा है।
मिश्रा ने बताया कि चीन में काफी पहले से ही इस दवा को सर्दी, खांसी व नाक-गले के संक्रमण के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।
प्रो. मिश्र कहते हैं कि भारत और चीन के लोगों की रसोई में स्वाद बढ़ाने के लिए वर्षो से प्रयोग में लाए जा रहे मसालों में शामिल ''स्टार एनाइस'' ही वह पदार्थ है जो स्वाइन फ्लू वायरस के हमले से भारत और चीन के लोगों को बचाए रख सकता है।
उन्होंने कहा कि ''स्टार एनाइस'' नाम लोगों को नया लग सकता है, लेकिन हर प्रांत में यह अपने गुणों एवं अलग-अलग नाम से यह खूब जाना पहचाना जाता है। देश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया के मुताबिक, ''स्टार एनाइस'' बड़े पैमाने पर दक्षिण-पूर्वी चीन और कम मात्रा में भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में सदाबहार झाडी के फूल के रूप में पैदा होता है।
इसे वनस्पति जगत में ''इलीसियम वेरम'' फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में फ्रक्टस एनिसी स्टेल्लटी, हिन्दी भाषा में कर्णफूल, अनासफल या वदियानी फूल, मलयालम में टेक्कोलम, मराठी में बदियान, उर्दू में बदियानी, तेलगू में अनासपूवू, तमिल में अनासूप्पू और अंग्रेजी भाषा में इंडियन एवं चाईनीज एनाईस के नाम से जाना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था व‌र्ल्ड फण्ड के मध्यप्रदेश के सलाहकार प्रो. मिश्र बताते हैं कि हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने भी चीन के स्वास्थ्य मंत्री चेन जून के हवाले से प्रसारित खबर में इस बात का उल्लेख किया है कि टेमीफ्लू एण्टीवायरल दवा का मुख्य घटक वही स्टार एनाइस है, जिसका प्रयोग भारतीय और चीनी रसोई में किया जाता है।
उन्होंने कहा कि भारत के हर शहर में किसी भी किराने की दुकान में यह कर्णफूल या वदियान फूल के नाम से मिल सकता है। सितारे के आकार की सात से आठ पंखुड़ियों के आकार का ''स्टार एनाइस'' स्वाद और खुशबू में सौंफ जैसा लगता है। उल्लेखनीय है कि अब तक 22 देश स्वाइन फ्लू यानि इनफ्लूएंजा ए .एच। एन। की चपेट में आ चुके हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अब तक इस स्वाइन फ्लू के वायरस के संक्रमण के 1516 मामलों की आधिकारिक पुष्टि हुई है, जिनमें से 29 लोगों की मौत हो चुकी है। यह एक नया वायरस है और मनुष्यों में इसकी प्रतिरोधक क्षमता अब तक विकसित नहीं हुई है। इसीलिए इसके महामारी का रुप धारण करने का खतरा है।
फिलहाल दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो अपने को एच। एन। वायरस के संक्रमण से पूरी तरह महफूज समझ रहा होगा।
मिश्र मानते हैं कि स्टार एनाइस के स्वाइन फ्लू के संक्रमण के खिलाफ रक्षा कवच मानने की खबर से दुनिया के अन्य देशों में भी इस बीमारी से निपटने के लिए देसी तरीकों की तलाश का सिलसिला शुरु हो सकता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5454672.html

ऐसे प्रशासन को चाटेंगे?

फरीदाबाद, [अनिल बेताब]। तपती दोपहरी में बलजीत पड़ोस के दरवाजे पर दस्तक देता है-दीदी! ठंडा पानी देना, फिर पानी पीकर घर लौट जाता है। मासूम चेहरा, हाथ-पैर सूखे हुए तथा पेट फूला हुआ यह किशोर एचआईवी पीड़ित है, जो अब सिर्फ समाज के रहमोकरम पर जीवित है। प्रशासनिक व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास इसकी सुध लेने का समय भी नहीं है।
बलजीत के मां व बाप एचआईवी से पीड़ित थे, जिनकी मौत हो गई। सामाजिक संस्था की मदद से पढ़ने योग्य एक भाई व दो बहनों को एसओएस बालग्राम में भर्ती कराया गया है, लेकिन अब बलजीत [काल्पनिक नाम] जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। बलजीत के खाने-पीने की तो व्यवस्था जैसे-तैसे हो जाती है, लेकिन उसकी जिंदगी कैसे संवरे, वह कैसे स्वस्थ जीवन जिए, इस सवाल का जवाब पड़ोस के लोगों के पास भी नहीं है। दो दिन से बलजीत की हालत भी बहुत बिगड़ी हुई है।
तेज बुखार से पीड़ित बलजीत की मानसिक स्थिति भी बिगड़ती नजर आ रही है। गर्मी में भी वह अपने घर का दरवाजा बंद कर कोने में अंधेरे में कंबल लेकर लेटता है। यह हकीकत है चार नंबर निवासी उस किशोर की, जो अब बिल्कुल तन्हा है।
वैसे एक ओर सरकार लोगों के स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। एचआईवी एवं एड्स नियंत्रण के लिए केंद्र व राज्य सरकार के अरबों रुपये खर्च किए जा रहे है। इसके बावजूद आज भी ऐसे कई परिवार व लोग है, जिनका जीवन रोगग्रस्त होने के बावजूद राम भरोसे चल रहा है।
एनआईटी के चार नंबर क्षेत्र के बलजीत के परिवार की हकीकत इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग की नजर में गरीब, बेसहारा व मजबूर लोगों के जीवन की कोई अहमियत नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5455102.html

शुक्रवार, 8 मई 2009

इस अमिताभ को क्या हो गया

रामू की बात हम नही करते, रामू तो रामू है। मुंबई में जब हमला हुआ तब ये जनाब होटल ताज में पर्यटन कर रहे थे। इसने तो देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी की अपेक्षा करना ही फिजूल है। लेकिन इस अमिताभ को क्या हो गया, जो रामू की ताल में ताल मिलते नज़र आ रहे है।
फ़िल्म रन कहे विवादास्पद गाना सेंसर कर दिया गया है, लेकिन बात यही पैर ख़त्म नही हो जाती है। यह तो इस बहस की शुरुवात है की जनभावानाओ का व्यवसायीकरण किस हद तक खतरनाक हो चला है। हरिवंश राय बच्चन और तेज़ी बच्चन के सुपुत्र अमिताभ बच्चन से अकल की उम्मीद तो की ही जा सकती है की वे राष्ट्र के मन-अपमान को समझ सकें, अमर सिह जैसे समाजवादियों की सोहबत में उन्होंने फ़िर क्या सीखा ? अमिताभ इस देश के महानायक कहे जाते है और उनके किए का अनुसरण करने वाले भरी तादाद में मौजूद है। लोग उनकी इज्ज़त करते है, इसके बावजूद की परदे से बहार उन्होंने सार्वजनिक हित का कोई बड़ा खूंटा कभी उखाडा हो ऐसा नज़र तो नही आता। परदे पर उन्हें बुरइयो से लड़ता देख कर मासूम देश ने नायक मान लिया।
जब अमिताभ जन गन मन को तोड़ मरोड़ कर गाते नज़र आते है तो यह मान लेना मुर्खता होगी की उन्हें अपनी करतूत का अंदाजा नही होगा। यह बुजुर्ग नायक आम आदमी से कही ज़्यादा अक्लमंद है और कानून कायदे जनता समझता है। बस यही पर अमिताभ कहे अपराध ज़्यादा गंभीर हो जाता है।
रामू तो सयाना है ही, यह तर्क कितना बचकाना है की जन गन मन के नए रूप में देश के वर्तमान हालत को पेश किया गया है। जिस लाइन को गाने से देश की छाती फूलती हो, जिसे गाने से मज़बूत राष्ट्र का अहसास होता हो, उसमे नकारात्मक ध्वनियाँ भरने कहे हक़ रामू या अमिताभ को किसने दिया? रामू अपने गीत में देश के हालत जितने बुरे बताना चाहते है, क्या सचमुच उतने बुरे हालत है? पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा क्या सचमुच में आपस में लड़ मर रहे है? यदि लोगो में एक-जुटना नही होती तो पंजाब कब का अलग हो गया होता, कश्मीर में साजिशें कामयाब हो चुकी होती, मराष्ट्र से अमिताभ बेदखल कर दिए गए होते, गुजरात मुस्लिम विहीन हो गया होता।
असल में किसी मुद्दे को सनसनीखेज़ बना कर कैसे पैसे कमाए जाते है ये बात रामू जैसे लोग खूब जानते है। अमिताभ जैसे लोग जब उनकी सोहबत में नज़र आते है तो ज़्यादा दुःख होता है।
अमिताभ ये देश आपकी इज्ज़त करता है, आप इसे बनाये रखें
-आजभी

एक विधायक ऐसा भी


http://www.dailychhattisgarh.com/today/Page%2012.pdf



गुदडी की लाल

सीहोर (मध्य प्रदेश)। इरादे पक्के हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। मध्य प्रदेश के छोटे से जनपद सीहोर की 23 वर्षीय प्रीति मैथिल ने इस बात को सच कर दिखाया है। हर तरह की विपरीत परिस्थितियों से पार पाते हुए मजदूर की बेटी प्रीति पहले ही प्रयास में आईएएस बनने में कामयाब रही।
प्रीति ने इस साल की भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में 92वीं रैंक हासिल की है। अपनी इस सफलता का पूरा श्रेय प्रीति अपने माता-पिता को देती हैं। स्थानीय रफी अहमद किदवई कृषि कालेज से स्नातक प्रीति ने कहा, 'आर्थिक तंगी के बावजूद पिता ने मेरी पढ़ाई नहीं रुकने दी। माता-पिता हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे। उन्होंने कभी भी मुझे गरीबी का अहसास नहीं होने दिया।' प्रीति आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली शायद सीहोर की पहली व्यक्ति हैं।
प्रीति ने कृषि और भूगोल विषयों के साथ आईएएस परीक्षा में सफलता हासिल की। आईएएस बनने के बाद खेती-बाड़ी को किसानों के लिए लाभदायक कारोबार बनाना प्रीति का मुख्य लक्ष्य होगा।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5451092.html