बुधवार, 29 अप्रैल 2009
ऐसा कहा था बापू ने ??
इस बात का उललेख बुधवार को विनोबा विचार के प्रचार के लिए तीस हजार किलोमीटर पदयात्रा करने वाले रमेश भैया ने किया। वे हिमाचल के जिला कांगड़ा स्थित मैक्लोडगंज में हिंद स्वराज पुस्तक पर चिंतन शिविर में बोल रहे थे। याद रहे कि गांधी की 1909 में लिखी 'हिंद स्वराज' पुस्तक का यह शताब्दी वर्ष है।
रमेश भैया ने इस अवसर पर कहा कि बिनोवा कहते थे कि जहां चुनाव होते हैं, वहां काम नहीं होते।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local.html?pgn_current=३ (साभार)
तालमेल या चुनावी रहत? जो भी हो अच्छा है
भीषण गर्मी के उड़ीसा के ब्रजराजनगर अंचल के सभी जलस्त्रोत सूख जाने से पानी के लिए हाहाकार मचा है। कोयला खदानों के कारण नलकूप एवं कुओं का पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है।
पेयजल समस्या का समाधान ईब नदी के पानी पर था, लेकिन जब नदी की धारा भी रुक गयी और यहां केवल बालू बच गया। aprail महीने में नदी के पूरी तरह सूख जाने का प्रमुख कारण था इस नदी पर छत्तीसगढ़ में जगह जगह बने बाँध।पिछले दिनों चुनाव प्रचार करने गए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को समस्या से अवगत कराया गया था। मुख्यमंत्री आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया था। इसी के मुताबिक छत्तीसगढ़ ने नदी में पानी छोड़ दिया है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_5428288.html
काश....
मध्यप्रदेश पुलिस के एक जांबाज अफसर का नाम मरणोपरांत लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज किया गया है।
हरजीत सिंह सूदन नाम के यह जुझारू पुलिस निरीक्षक शरीर में 150 छर्रे धंसे होने के बावजूद बीस साल तक अपने फर्ज को अंजाम देते रहे।
ये छर्रे सूदन को डाकुओं से हुई भिड़ंत के दौरान लगे थे और उन्होंने जब पिछले साल दंगों में ड्यूटी के दौरान आखिरी सांस ली, तब भी ये छर्रे उनके शरीर में ही थे। कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की उनकी इस अदम्य इच्छाशक्ति को लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में राष्ट्रीय कीर्तिमान के रूप में जगह दी गई है।
सूदन के बेटे गुरविंदर सिंह यह जानकारी देते हुए भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया, 'उनकी मौत छह महीने पहले हुई। जब हमें हाल ही में लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स की ओर से प्रमाण पत्र मिला तो बहुत गर्व हुआ, लेकिन मन में यह टीस भी उठी कि काश, यह कीर्तिमान जीते जी उनके नाम हो जाता।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5429719.html
नजरिया
बाइडेन ने ह्यूस्टन में एक बैठक में एक प्रश्न के जवाब में कहा, 'पाक बहुत अस्थिर देश है. हालांकि यह कहना बहुत कर्कश लगता है।'
बाइडेन ने कहा कि पाक को भारत को अपना दुश्मन समझने की प्रवृत्ति से मुक्त होना पड़ेगा और इसके लिए उसे एक सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पाक को समझना चाहिए कि उसका दुश्मन भारत नहीं बल्कि बैतुल्लाह महसूद, अल कायदा और तालिबान है।'
http://in.jagran.yahoo.com/news/international/politics/3_6_5430732.हटमल (साभार)
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
धर्म
डा० आशुतोष , drashu@gmail।com
http://khabar.ndtv.com/Leisure/YourExperienceListing.aspx?Id=४९७ पर (साभार)
सावधान, भूख फ़ैल रही है
ब्रेटन वुड्स संस्थान ने कहा कि संकट ने पांच करोड़ लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों को गरीबी की गहराई में धकेल दिया है। जो विकास लक्ष्य रखे गए थे उनमें भुखमरी, शिक्षा, एचआईवी-एड्स की रोकथाम में प्रगति, बाल मृत्यु दर में कमी और मलेरिया और अन्य बीमारियों की रोकथाम शामिल है। जोइलिक ने कहा कि 2009 के दौरान 5.5 करोड़ से 9 करोड़ और लोग गरीबी में डूब जाएंगे। इस साल भुखमरी की स्थिति में रह रहे लोगों की संख्या एक अरब से ज्यादा हो जाएगी।
स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_5425391.html (साभार)
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
नरभक्षी
रविवार, 26 अप्रैल 2009
नया खतरा
मलेरिया के रूप में दुनिया के सामने अब एक नई चुनौती पैदा हो
गई है। आर्टेमिसिनिन नाम की दवा को मलेरिया की अब तक की सबसे कारगर दवा माना जाता है। पर हाल ही में मलेरिया की एक ऐसी किस्म सामने आई है जिसने इस दवा के प्रति खुद में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। यही वजह है कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएचओ) भी इसे अब ग्लोबल खतरे के तौर पर देख रहा है। मलेरिया की इस किस्म का पता पहली दफा साल 2007 में लगा था। तब इससे जुड़े मामले थाइलैंड और कंबोडिया सीमा पर स्थित मेकोंग इलाके में देखे गए थे। अब डब्लूएचओ ने भी स्वीकार लिया है कि इस स्ट्रेन ने खुद को आर्टेमिसिनिन के प्रति रेजिस्टेंट बना लिया है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पैरासाइट के कारण इंसान को सबसे घातक किस्म का मलेरिया होता है। आर्टेमिसिनिन को कॉम्बिनेशन थेरपी में इस्तेमाल किया जाता है। थाइलैंड में इसका इस्तेमाल पिछले पांच साल से हो रहा है। भारत में एसीटी का इस्तेमाल पिछले साल से ही किया जा रहा है। फिलहाल देश के 117 जिले इस ड्रग कॉम्बो का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पहले एक्सपर्ट्स का कहना रहा है कि एसीटी इंसानी खून में मौजूद मलेरिया के पैरासाइट को 24 से 36 घंटों के भीतर मार सकता है। पर ड्रग रेजिस्टेंट स्टेन के मामले में पैरासाइट को मारने में एसीटी को 120 घंटे लग जाते हैं। भारत पर इस पैरासइट के खतरे के बारे में डब्लूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया में मलेरिया अडवाइजर डॉ। क्रोंग पोंग का कहना है, चूंकि लोग हर समय एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं इसलिए मुमकिन है कि ड्रग रेजिस्टेंट पैरासाइट भी थाइलैंड और कंबोडिया से बाहर फैलने लगे। कुछ ही देर में एक संक्रमित इंसान इस पैरासाइट को भारत भी ला सकता है।
(नवभारत टाईम्स पर टी एन एन के कन्तेया सिन्हा की रिपोर्ट ) http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4448654.cms (साभार)
-आजभी
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
ज़ज्बा रंग लाया
बेंगलूर की दो वृद्धाओं ने समाजसेवा के उद्देश्य से वृद्धाश्रम बनाने का सपना पाला और फिर पिज्जा बेचकर इसे सच भी कर दिखाया। पिज्जा दादी के नाम से मशहूर 73 वर्षीय पद्मा श्रीनिवासन और 75 वर्षीय जयलक्ष्मी श्रीनिवासन के जहन में वर्ष 2003 में एक वृद्धाश्रम बनाने का विचार आया, तो उन्होंने पिज्जा बेचकर इसका निर्माण करने का फैसला पद्मा ने इसके लिए पहले बेंगलूरु से 30 किलोमीटर दूर विजयनगर गांव में एक भूखंड खरीदा। एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से वित्ता प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्ता पद्मा ने कहा कि भूखंड खरीदने के लिए मैंने अपने पास से 10 लाख रुपये खर्च किए।वह आगे बताती है कि यह भूखंड 22,000 वर्ग फुट का है, लेकिन अब इस भूखंड पर वृद्धाश्रम का निर्माण करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। इस कार्य में 78 लाख रुपये की लागत आने वाली है। इसी दौरान मेरी बेटी सारसा वासुदेवन व मेरी मित्र जयलक्ष्मी ने इस काम हेतु पैसे जुटाने के लिए पिज्जा बनाकर बेचने का सुझाव दिया। इसके साथ ही पिज्जा का मेरा कारोबार शुरू हो गया। पिज्जा हेवेन' नामक पिज्जा की दुकान पद्मा की बेटी के गरेज में शुरू हो गई। पिज्जा की आपूर्ति बेंगलूरु के आईटी कंपनियों में शुरू की गई। जल्द ही पिज्जा यहां के युवा आईटी कर्मचारियों का पसंदीदा बन गया। पिज्जा से होने वाली आय व शुभचिंतकों के आर्थिक सहयोग से वर्ष 2008 के जून महीने में 'विश्रांति' नामक वृद्धाश्रम बनकर तैयार हो गया। 'विश्रांति' में अभी 10 वृद्ध रहते है। इस संख्या में जल्द ही बढ़ोतरी होने वाली है।
दैनिक जागरण के हवाले से चोखेर बाली पर ख़बर (साभार)
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
त्राहि माम
आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और विदर्भ के इलाकों से किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार आती रही हैं लेकिन अब मध्यप्रदेश में भी किसान खेती की विफलता के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। राज्य में अब तक 8 किसानों की आत्महत्या की खबर आ चुकी है. लोकसभा चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप तो हो रहे हैं लेकिन इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है कि आखिर किसान जान क्यों दे रहे हैं ?
इस वर्ष कम बारिश और सूखा की स्थिति थी. ऊपर से बिजली कटौती ने किसानों की परेशानी और बढ़ा दी है और इलाके के किसान एक गहरे संकट के दौर से गुजर रहे हैं. एक ओर तो वे बिजली कटौती के कारण फसलों में पर्याप्त पानी नहीं दे पाते, वहीं दूसरी ओर कम-ज्यादा वोल्टेज के कारण सिंचाई के मोटर जलने से वे परेशान रहते है.मध्यप्रदेश में एशियाई विकास बैंक के कर्जे से चल रहे बिजली सुधारों की स्थिति सुधरी तो नहीं है, बिगड़ ही रही है. अनाप-शनाप बिजली के बिल और कुर्की की घटनाएं सामने आ रही हैं. ग्राम नांदना में ही एक किसान की मोटर साईकिल कुर्की वाले उठाकर ले गए जबकि कर्ज किसी दूसरे किसान का था. किसानों पर ज्यादतियां बढ़ रही हैआत्महत्याएं तो कुछ किसानों ने ही की हैं लेकिन संकट में सब हैं।
बाबा मायाराम की रिपोर्ट के संपादित अंश (स्रोत रविवार.कॉम )http://raviwar.com/news/155_mp-farmers-suicide-baba-mayaram.shtml (साभार)
गनीमत है कोर्ट है
सेना में तैनात महिला अधिकारियों के साथ नौकरी में भेदभाव बरते जाने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रक्षा मंत्रालय को जमकर फटकार लगाते हुए पूछा है कि यह भेदभाव क्यों? जब छह माह पूर्व हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संबंध में गहन विचार विमर्श कर समाधान निकालने का आदेश दिया था, तो अभी तक टाल मटोल क्यों किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि भारतीय सेना जैसे अनुशासित विभाग में लिंग भेद बेहद शर्मनाक है। कोर्ट सैन्य महिला अधिकारियों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने खुद को स्थायी सर्विस कमीशन में रखने की मांग की है।
स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_5418526.html (साभार)
महिला की जगह पुरुष
सेंट्रल जेल रायपुर में सिलाई प्रशिक्षक के पद पर महिला के बजात पुヒष की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने गलत ठहराते हुए कहा कि इससे आरक्षण का आधार ही खत्म हो जाएगा। रायपुर निवासी मंजू सिंह ने वकील राकेश पांडेय के माध्यम से याचिका दायर कर बताया था कि रायपुर जेल में सिलाई प्रशिक्षक के चार पदों के लिए नवंबर २००७ में विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें दो पद अनारक्षित व दो पद आरक्षित थे। याचिका में नियुक्ति के लिए विज्ञापन में दिए गए आरक्षण की शर्तों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि जेल प्रशासन ने दो अनारक्षित पदों पर पुヒष आवेदकों की नियुक्ति कर दी है, जबकि अनारक्षित पद में एक महिला व एक पुヒष की भर्ती होनी थी। अनारक्षित महिला के पद पर पुरूष आवेदक की नियुक्ति करना नियम के विपरीत है।
(नईदुनिया से साभार) http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx
फर्क देख लो
जब तक सबके लिए एक समान शिक्षा नीति लागू नहीं की जाएगी और जब तक गरीबों-अमीरों में भारी अन्तर पैदा करने वाली यह दोहरी शिक्षा नीति लागू रहेगी, तब तक गरीबों के साथ अन्याय होता रहेगा. नेता लोग आरक्षण का विरोध या समर्थन का ढ़ोंग तो करते नजर आते हैं लेकिन कोई नेता या अफसर अपने बेटा-बेटियों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाता? क्या यह पक्षपात नहीं है?एक पहलवान और एक भूखे पेट गरीब की कुश्ती को कदापि न्याय नहीं कहा जा सकता है.
-सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटर नौएडा-भारत
(बीबीसी द्वारा छेड़ी गई एक बहस में शामिल होते हुवे)http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?sortBy=1&forumID=8570&start=15&tstart=0#paginator (साभार)
बच्चे गुड्डा-गुड्डी नही
बाल विवाह की वैधता के मामले को देख रही न्यायाधीश विक्रमजीत सेन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, 'यह बेहतर होगा कि कानून को अधिक कड़ा बनाया जाए ताकि माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को विवाह के लिए मजबूर न न करें।' इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रखते हुए पीठ ने कहा, 'भारतीय समाज में इस प्रकार का विवाह बच्ची के हित में नहीं है, क्योंकि यदि नाबालिग बच्ची का विवाह रद्द घोषित हो जाता है तो पुन: उसका विवाह करने में दिक्कत आएगी।' नाबालिग के विवाह की वैधता के मुद्दे पर न्यायाधीशों के बीच मतभेद होने के कारण अदालत की पूर्ण पीठ से इस मामले की सुनवाई करने को कहा गया था।
और हाँ, यदि कोई ऐसा मामला आपके ध्यान में हो जिसमे इस कुप्रथा की वजह से किसी की ज़िन्दगी तबाह हुई हो तो किस्सा हमें लिख भेजे। ईमेल या टिप्पणियों के माध्यम से। इतना ख्याल रखे की किसी की मान हानि न हो ।
मासूमो की ज़िन्दगी बचाने में यह आपका बड़ा योगदान होगा।
-आजभी
ये है कर्णधार
पुरी ख़बर देखें http://www.khaskhabar.com/showstory.php?storyid=1761 (साभार)
दूसरा पहलु
जन-सुरक्षा कानून के तहत बाईस महिनो से जेल मे बंद डा विनायक सेन की रिहाई की मांग के लिये राजधानी रायपुर मे हर सोमवार को प्रदर्शन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।इसी के तहत कल अरुंधति राय यहां आई और सरकार को कोस कर वापस लौट गई।उन्होने जेल मे बंद करने वाली सरकार पर तो जमकर आरोप लगाये मगर डा सेन को अदालत ने जमानत पर रिहा करने की अर्जी को नामंज़ूर क्यों की ,इस पर कुछ नही कहा। डा सेन की रिहाई की मांग करने वाले ये तो कहते है कि सरकार के पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नही है,फ़िर उन्हे जमानत क्यो नही मिल पा रही इस बात का उनके पास कोई जवाब नही है।मानवाधिकारो की वकालत करने वालो के पास शायद इस सवाल का भी जवाब नही होगा कि अदालत के फ़ैसले का सम्मान करने की बजाये उसके खिलाफ़ जन आंदोलन खड़ा करना या धरना-प्रदर्शन और रैली करना क्या अदालत के काम-काज को प्रभावित करने की कोशिश नही है?क्या ये अदालत की अवमानना नही है?डा सेन को रिहा कराने के लिये अदालत छोड़ आंदोलन का सहारा लेना कितना सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?क्या अदालत के फ़ैसले जो पक्ष मे आते हैं,या सरकारों,खास कर गुजरात सरकार के खिलाफ़ होते है,सिर्फ़ वे सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?
-अनिल पुसदकर अपने ब्लाग अनिल पुसदकर.कॉम में
स्रोत http://anilpusadkar.blogspot.com/
------------------
मानवाधिकार कार्यकर्ताओ ने डा बिनायक सेन की गिरफ्तारी को लेकर कई सवाल खड़े किए है । लेकिन आम लोगो के जेहन में भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के लिए सवाल है । रायपुर के पत्रकार अनिल पुसदकर ने अरुंधती राय प्रकरण के बहाने ऐसे ही कुछ सवाल उछाले है ।
-आजभी
------------------
कहाँ जा रहे हो
दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि आग से खेलने वाली वृत्तियॉं केवल जलाकर खाक ही करती हैं। किसी खास तरह के मुकम्मल समाधान का संदेश ऐसे लोगों के पास नहीं होता। हाल ही में, झारखंड के लातेहार नामक स्थान पर बीएसएफ की टुकड़ी को निशाना बनाने के लिए, केवल नौ साल के एक बच्चे का इस्तेमाल किया गया। इतना ही पर्याप्त नहीं था, बल्कि इन्हें नक्सली सुरक्षा बलों के आने-जाने और उनकी गतिविधियों की टोह लेने के लिए, इन बच्चों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। ऐसे हालात में, हम इन्हें किस दिशा में ले जाकर जीवन के उन ज्वलंत प्रश्नों के निवारण का सामर्थ्य सौंपेंगे,कुछ कहा नहीं जा सकता? जिस उम्र में शिक्षा और जीवन को विकसित करने की कला सिखाई जाती है, उस उम्र में हम उन्हें हथियारों और गोला-बारूदों से ढॅंक देने का प्रयास करेंगे तो आखिर उनके भविष्य का दारोमदार कहॉं जाकर दम लेगा? झारखंड की इन्हीं स्थितियों से कहीं और आगे छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इन बच्चों का एक व्यापक समूह "बाल संघम" के रूप में जाना जाता है।
नई दुनिया में सम्पादकीय दिनांक २४ अप्रैल ०९
http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx (साभार)
--------------------
दोस्तों
हालातकितने खतरनाक हो चले है। नई दुनिया ने ठीक ही लिखा है। सत्ता के लिए ये कैसा संघर्ष है, विचारधाराओ की ये कैसी लडाई है, मासूमो की आहूति देकर कौन सा और कैसा शोषण मुक्त समाज बन पायेगा? जिन बचचों को अपने बचपन की भी ख़बर नही उनका इस्तेमाल लडाई में हथियारों की तरह करना क्या उनका शोषण करना नही है ?
-आज भी
------
देर-सबेर
(ख़बर स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/?page=slideshow&articleid=2103&category=7 --------------------------------
दोस्तों,
आज भी ऐसे लोग है जो नाम या दाम के लिए स्वाभिमान से समझौता नही करते। जो समझते है की कागजी फूलो को ही बनावटी रंगों और खुशबू की जरुरत होती है। कुदरती तो यूँ ही महका करते है।
आखिरकार शंकर दा का ज़ज्बा ही जीता।
इस ज़ज्बे को सलाम ।
-आज भी
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
काम की बात
-पंकज अवधिया
हलचल.ज्ञानदत्त.कॉम में
----------
बहूत सी छोटी-छोटी बाते है जो ज़िन्दगी में बड़े काम की होती है, लेकिन लोग बड़ी-बड़ी बिना matalab की बातो में उलझे रहते है । आपकी नज़र भी पंकज जी की तरह किसी खास आम चीज़ पर गई हो तो लिख भेजें ।
-आज भी
----------
तो बम कैसा होगा?
कैसी दुनिया कैसे लोग
18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबाई के अंदाज़ में रहती हैं। यानि अपनी पोती की उम्र की लड़की को भी खुशवंत सिंह भौंडी नज़र से देखते हैं। और तो और वो कृष्ण-भक्त मीराबाई को भी अपनी घिनौनी कामुकता के दायरे में ले आते हैं।
अतुल अग्रवाल
विस्फोट.कॉम में
कोशिश एक आश
इस बाबत विशेषज्ञों की एक बैठक 27 अप्रैल को हैदराबाद में होगी। हिमाचल के जिला कांगड़ा स्थित चौधरी सरवण कुमार कृषि विवि पालमपुर इसमें रिसर्च पार्टनर होगा।
इसमें डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर एंड कोआपरेशन, आईसीएआर,आईआईटी दिल्ली, नेशनल सेंटर फार मीडियम रेंज वेदर फारकास्टिंग व स्पेस एप्लीकेशंज सेंटर के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसके अलावा आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कई देशों के वैज्ञानिक भी इसमें शामिल होंगे
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
जय हो
देविंदर शर्मा का विश्लेषण
रविवार डट कॉम में
( आप की टिप्पणिया आमंत्रित है)
जूता बनाम इंडिया
-गिरिराज किशोर
अपने ब्लाग फिलहाल में
अनुभूति
हरे भरे मन की थाह
उस क्षण,न जाने
क्यों ऐसी अनुभूति
हुईकि मेरा
मनएक विस्तृत भू-खण्ड
भान ही कहां थाकि
इस घास से भरे भू-खण्ड पर
कब से हजारों पक्षीं
न जाने कैसे बीज चुग रहे
तुम न आते और
in अजाने- अदेखेपक्षियों का झुण्ड
शोर मचाकरउड न गया होतातो
,मैं अपने हरे भरे मन कीथाह कैसे पाती?
– मनीषा कुलश्रेष्ठ
( हिन्दी नेस्ट डाट काम में)
rajniti
कट्टरपंथी नेता और पूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान के नेतृत्व वाले अकाली दल (अमृतसर) ने पत्रकार जरनैल सिंह को लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी का टिकट देने का प्रस्ताव दिया है।
मान ने सिंह को अमृतसर सीट से टिकट देने का प्रस्ताव दिया है। यहां से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को मैदान में उतारा है।
मान ने कहा, “जरनैल ने बहादुरी का एक बड़ा काम किया है। सिखों के साथ हुए अन्याय को रेखांकित करने के लिए सिंह ने जो काम किया, उस पर हम सभी सिखों को गर्व है।”
(इस ख़बर पर आपकी राय लिखे)
हम बोलेंगे तो बोलेंगे की बोलते है
वरुण को दोष देने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस तरह के बयान तो कई नेता देते रहे है. पर वरुण का बयान चुनाव के समय आया है. 2005 मे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी कहा था और तब वहाँ राजनाथ सिंह भी थे लेकिन लोगों को सज़ा अपने क़द के अनुसार मिलती है.वरुण ने जो कहा वह ग़लत है ही पर उससे भी ग़लत अब उस पर होने वाली राजनीत में होगा. कभी कविता लिखने वाले ये वरुण गांधी वह नहीं हैं जो भारत को एकजुट कर सकें.
DIPAK D। CHUDASAMA HYDERABAD
(बीबीसी में)
( photo : akhilesh bharos flickr ke chhattisgarh teg me)
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
देखो ना
देखो न
कैसी खुबसूरत खामोशी है
जो पसर रही है
मेरे-तुम्हारे भीतर
के दुनिया दिन-ब-दीन
कितनी खुबसूरत होती जा रही है
पोस्टर पर
मुस्कुरा रहा है मंगलू
नैनो में नैनो चमक रही है
रामू की बस्ती में
एक्वागार्ड छान रहा है प्यास
रिक्शा khhich kar thhaka chainu
brislari se bujhata hai प्यास
बिसेसर की जेब में है टाटा-अम्बानी
हर रोज देस फोन लगा
जोरू को बताता है
दिहाडी के किस्से
गावो के गावो
किंगफिशर पैर मुग्ध है
पुनीत के कुंवे से
पानी नही
कोका-कोला निकलता है
आधी आबादी पड़ती है डीपीएस जैसे स्कूलों में
आधी को
मोबाईल पर abhisek पदाता है
fatichar लोग
chun रहे है ख़ुद के लिए
karodpati sansad-widhayak
सितारे, galiyon-chaurahon पर
भीख mang रहे है
बड़े babu का बेटा
hiro-honda par sawar है
bitiya skuti par farrte bhar रही है
bhikhu chaprasi का बेटा
रोज fast food mangta है
बाप की जेब जो लाल है
कैसे खुबसूरत nazare है दोस्तों
udhar bam
इधर हम
udhar warun lalkar रहे है
इधर jagdish पर wichar रहे है
sanju बाबा की jhhappi-pappi
lalu का thenga
karunauanidhi की yari
bastar में janta bechari
polis naxali दोनों maar रहे है
mulayam के sath kalyan है
adwani-manmohan का bayan है
देखो न doston
कैसी खुबसूरत खामोशी है
जो पसर रही है
मेरे-तुम्हारे भीतर