शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

दूसरा पहलु

जन-सुरक्षा कानून के तहत बाईस महिनो से जेल मे बंद डा विनायक सेन की रिहाई की मांग के लिये राजधानी रायपुर मे हर सोमवार को प्रदर्शन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।इसी के तहत कल अरुंधति राय यहां आई और सरकार को कोस कर वापस लौट गई।उन्होने जेल मे बंद करने वाली सरकार पर तो जमकर आरोप लगाये मगर डा सेन को अदालत ने जमानत पर रिहा करने की अर्जी को नामंज़ूर क्यों की ,इस पर कुछ नही कहा। डा सेन की रिहाई की मांग करने वाले ये तो कहते है कि सरकार के पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नही है,फ़िर उन्हे जमानत क्यो नही मिल पा रही इस बात का उनके पास कोई जवाब नही है।मानवाधिकारो की वकालत करने वालो के पास शायद इस सवाल का भी जवाब नही होगा कि अदालत के फ़ैसले का सम्मान करने की बजाये उसके खिलाफ़ जन आंदोलन खड़ा करना या धरना-प्रदर्शन और रैली करना क्या अदालत के काम-काज को प्रभावित करने की कोशिश नही है?क्या ये अदालत की अवमानना नही है?डा सेन को रिहा कराने के लिये अदालत छोड़ आंदोलन का सहारा लेना कितना सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?क्या अदालत के फ़ैसले जो पक्ष मे आते हैं,या सरकारों,खास कर गुजरात सरकार के खिलाफ़ होते है,सिर्फ़ वे सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?

-अनिल पुसदकर अपने ब्लाग अनिल पुसदकर.कॉम में

स्रोत http://anilpusadkar.blogspot.com/

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मानवाधिकार कार्यकर्ताओ ने डा बिनायक सेन की गिरफ्तारी को लेकर कई सवाल खड़े किए है । लेकिन आम लोगो के जेहन में भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के लिए सवाल है । रायपुर के पत्रकार अनिल पुसदकर ने अरुंधती राय प्रकरण के बहाने ऐसे ही कुछ सवाल उछाले है ।

-आजभी

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