सोमवार, 27 अप्रैल 2009

नरभक्षी


एक दिल दहला देने वाली ख़बर है। एक किसान ने अपनी पोती का सर इसलिए धड से अलग कर दिया क्योकि उसे विश्वास था की उसके खून से सने बीज अच्छी उपज देंगे। यह सिर्फ़ अन्धविश्वाश की ही ख़बर नही है, ये उन हालत की भी ख़बर है जिनमे किसान जी रहे है। विकास के तमाम दावों के बीच कहीं वे खुदकुशी कर रहे है तो कही अपनों की बलि चदा रहे है। यह इस बात की भी ख़बर है की शिक्षा और वैज्ञानिक चेतना का प्रसार कहा तक हो पाया है। टीवी पर इस पर चर्चा सरगर्म है की कौन बनेगा प्रधानमंत्री को छोड़ कर देश में कही कोई चुनावी मुद्दा नही है। लोगो को आश्वाशन दिया जा रहा है की अमुक पार्टी की सरकार बनी तो विदेशो में जमा दौलत भारत लाइ जायेगी, आयकर का दायरा बढाया जाएगा। देश में ही जाम काले धन की चर्चा कही नही है।इस धन के समान वितरण के प्रयास का वायदा कही नही है, विज्ञान और तकनीक को सही मायने में खेतो तक पहुचने का वायदा कही नही है, महंगे स्कूलों की चाहर दिवारी में कैद होती जा रही उच् शिक्षा को मुक्त करवा कर ग्रामीण बच्चो तक पहुचाने का वायदा कही नही है।
क्या हम किसानो और उनके बच्चो के खून से सना अनाज नही खा रहे? क्या इस व्यवस्था में हम भी नरभक्षी नही होते जा रहे है ?
सोचें और सोचाएं
-आजभी

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