बुधवार, 22 अप्रैल 2009

अनुभूति



हरे भरे मन की थाह
उस क्षण,न जाने


क्यों ऐसी अनुभूति


हुईकि मेरा


मनएक विस्तृत भू-खण्ड


भान ही कहां थाकि


इस घास से भरे भू-खण्ड पर


कब से हजारों पक्षीं


जाने कैसे बीज चुग रहे


तुम न आते और


in अजाने- अदेखेपक्षियों का झुण्ड


शोर मचाकरउड न गया होतातो


,मैं अपने हरे भरे मन कीथाह कैसे पाती?
मनीषा कुलश्रेष्ठ


( हिन्दी नेस्ट डाट काम में)

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