हरे भरे मन की थाह
उस क्षण,न जाने
क्यों ऐसी अनुभूति
हुईकि मेरा
मनएक विस्तृत भू-खण्ड
भान ही कहां थाकि
इस घास से भरे भू-खण्ड पर
कब से हजारों पक्षीं
न जाने कैसे बीज चुग रहे
तुम न आते और
in अजाने- अदेखेपक्षियों का झुण्ड
शोर मचाकरउड न गया होतातो
,मैं अपने हरे भरे मन कीथाह कैसे पाती?
– मनीषा कुलश्रेष्ठ
( हिन्दी नेस्ट डाट काम में)
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