शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

गनीमत है कोर्ट है

सेना में तैनात महिला अधिकारियों के साथ नौकरी में भेदभाव बरते जाने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रक्षा मंत्रालय को जमकर फटकार लगाते हुए पूछा है कि यह भेदभाव क्यों? जब छह माह पूर्व हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संबंध में गहन विचार विमर्श कर समाधान निकालने का आदेश दिया था, तो अभी तक टाल मटोल क्यों किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि भारतीय सेना जैसे अनुशासित विभाग में लिंग भेद बेहद शर्मनाक है। कोर्ट सैन्य महिला अधिकारियों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने खुद को स्थायी सर्विस कमीशन में रखने की मांग की है।

स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_5418526.html (साभार)

महिला की जगह पुरुष

सेंट्रल जेल रायपुर में सिलाई प्रशिक्षक के पद पर महिला के बजात पुヒष की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने गलत ठहराते हुए कहा कि इससे आरक्षण का आधार ही खत्म हो जाएगा। रायपुर निवासी मंजू सिंह ने वकील राकेश पांडेय के माध्यम से याचिका दायर कर बताया था कि रायपुर जेल में सिलाई प्रशिक्षक के चार पदों के लिए नवंबर २००७ में विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें दो पद अनारक्षित व दो पद आरक्षित थे। याचिका में नियुक्ति के लिए विज्ञापन में दिए गए आरक्षण की शर्तों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि जेल प्रशासन ने दो अनारक्षित पदों पर पुヒष आवेदकों की नियुक्ति कर दी है, जबकि अनारक्षित पद में एक महिला व एक पुヒष की भर्ती होनी थी। अनारक्षित महिला के पद पर पुरूष आवेदक की नियुक्ति करना नियम के विपरीत है।

(नईदुनिया से साभार) http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx

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