बुधवार, 13 मई 2009

डरते डरते

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बिलकुल मुहाने पर नक्सलवादियों ने बारूदी विस्फोट कर १३ जानें ले ली। इस प्रदेश में ऐसी घटनाएँ नई नही है, नया इसमे यही है की इस बार इस आग की आंच शहरी इलाको में पड़ी है। घटना टिक उस वक्त हुई जब मुख्यमंत्री रमन सिंग नक्सली वारदातों पर नकेल कसने के आला अफसरों को डांट फटकर रहे थे। इस बार का विस्फोट सरकार के सामने ज़्यादा बड़ी चुनोती के रूप में देखा जा रहा है।
नक्सलियों की बदती गतिविधियाँ परेशान कर देने वाली तो है ही, इस तरह की घटनाओ के बाद जैसी राजनीती होती है वह भी कम हैरान कर देने वाली नही है। पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने एक भी ठोस मुद्दा नही उठाया, और अब वह नक्सल मोर्चे पर विफल रहने का आरोप लगते हुवे राज्य सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। असल में नक्सल मुद्दे पर निति को लेकर कांग्रेस ख़ुद भी बिखरी हुई नज़र आती रही है। मध्य प्रदेश के ज़माने में जब कांग्रेस की सरकार थी तब भी नक्सलवाद छत्तीसगढ़ में खूब फला फुला था, इसके तुंरत बाद जब विभक्त छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तब भी नक्सलियों पर प्रभावी अंकुश नही लगाया जा सका। भारतीय जनता पार्टी ने इस समस्या के समाधान के लिए सलवा जुडूम का जो फार्मूला अपनाया उसका भी कोई असर दिखाई नही पड़ता। ना तो हिंसक वारदातों में कोई कमी आई और न ही नाक्सालियो की संख्या में। उल्टे ये बड़ते ही गए। सैकडो ग्रामीण बेघर जरुर कर दिए गए, अब वे बस्तर में नई बस्तर के रहत शिविरों में रह रहे है। ताज्जुब की बात यह है की सलवा जुडूम जैसे बचकाने कार्यक्रम की अगुवाई एक कांग्रेसी नेता कर रहे थे, और तब वे नेता प्रतिपक्ष थे।
अब ताजे विस्फोट के बाद कांग्रेस राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा बंदी कर रही है। सच तो यह है की इस समस्या के समाधान के लिए यदि राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारिया ठीक तरह से नही निभाई तो कांग्रेस ने भी विपक्ष की जिम्मेदारी को ठीक तरह से पुरा नही किया। राजनीती घटनाओ पर की जा रही है, जबकि यह मुद्दों पर होनी चाहिए। इस की तलाश होनी चाहिए की वो कौन के उर्वरक है जिनसे नक्सलवाद हरा भरा होता है। किन मुद्दों के दम पर नक्सलवादी ग्रामीणों के बीच अपनी पैठ बनने में सफल हो रहे है। हल ही में छत्तीसगढ़ में एक डाक्टर की गिरफ्तारी की बड़ी चर्चा रही, यह नक्सलियों का सहयोगी बताया जाता है। सरकार ने नक्सलियों के बड़े नेट वर्क को तोड़ने का दावा किया है। यदि सरकार का दावा सही है तो तालियाँ, ऐसी और गिरफ्तारिया होनी चाहिए। लेकिन मूठ भेद और गिरफ्तारिया तो कानूनी प्रक्रिया है। इस समस्या का समाधान कानूनी नही राजनितिक प्रक्रिया में नज़र आता है। इसके लिए पक्ष विपक्ष से एकजुट राजनीती की उम्मीद हम आम लोग करते है। आम जनता के मुद्दों का समदन जनता के चुने हुवे प्रतिनिधि ही यदि करें, तो नक्सलवादी भला पनपे ही क्यो?

शनिवार, 9 मई 2009

गरम मसाला खाओ, स्वाइन फ्लू भगाओ

सागर। दुनिया भर में दहशत फैला रहे स्वाइन फ्लू को भारत के हर घर की रसोई में रोजाना उपयोग में आने वाले गरम मसाले के एक घटक से ही निपटा जा सकता है।
स्थानीय डा. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर अजय शंकर मिश्रा ने बताया कि गरम मसाले का एक घटक 'स्टार एनाइस' ही वह पदार्थ है, जिससे टेमीफ्लू नामक एण्टी वायरल दवा बनाई जाती है। टेमीफ्लू को स्वाइन फ्लू से निपटने में सबसे ज्यादा कारगर उपचार माना जा रहा है।
मिश्रा ने बताया कि चीन में काफी पहले से ही इस दवा को सर्दी, खांसी व नाक-गले के संक्रमण के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।
प्रो. मिश्र कहते हैं कि भारत और चीन के लोगों की रसोई में स्वाद बढ़ाने के लिए वर्षो से प्रयोग में लाए जा रहे मसालों में शामिल ''स्टार एनाइस'' ही वह पदार्थ है जो स्वाइन फ्लू वायरस के हमले से भारत और चीन के लोगों को बचाए रख सकता है।
उन्होंने कहा कि ''स्टार एनाइस'' नाम लोगों को नया लग सकता है, लेकिन हर प्रांत में यह अपने गुणों एवं अलग-अलग नाम से यह खूब जाना पहचाना जाता है। देश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया के मुताबिक, ''स्टार एनाइस'' बड़े पैमाने पर दक्षिण-पूर्वी चीन और कम मात्रा में भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में सदाबहार झाडी के फूल के रूप में पैदा होता है।
इसे वनस्पति जगत में ''इलीसियम वेरम'' फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में फ्रक्टस एनिसी स्टेल्लटी, हिन्दी भाषा में कर्णफूल, अनासफल या वदियानी फूल, मलयालम में टेक्कोलम, मराठी में बदियान, उर्दू में बदियानी, तेलगू में अनासपूवू, तमिल में अनासूप्पू और अंग्रेजी भाषा में इंडियन एवं चाईनीज एनाईस के नाम से जाना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था व‌र्ल्ड फण्ड के मध्यप्रदेश के सलाहकार प्रो. मिश्र बताते हैं कि हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने भी चीन के स्वास्थ्य मंत्री चेन जून के हवाले से प्रसारित खबर में इस बात का उल्लेख किया है कि टेमीफ्लू एण्टीवायरल दवा का मुख्य घटक वही स्टार एनाइस है, जिसका प्रयोग भारतीय और चीनी रसोई में किया जाता है।
उन्होंने कहा कि भारत के हर शहर में किसी भी किराने की दुकान में यह कर्णफूल या वदियान फूल के नाम से मिल सकता है। सितारे के आकार की सात से आठ पंखुड़ियों के आकार का ''स्टार एनाइस'' स्वाद और खुशबू में सौंफ जैसा लगता है। उल्लेखनीय है कि अब तक 22 देश स्वाइन फ्लू यानि इनफ्लूएंजा ए .एच। एन। की चपेट में आ चुके हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अब तक इस स्वाइन फ्लू के वायरस के संक्रमण के 1516 मामलों की आधिकारिक पुष्टि हुई है, जिनमें से 29 लोगों की मौत हो चुकी है। यह एक नया वायरस है और मनुष्यों में इसकी प्रतिरोधक क्षमता अब तक विकसित नहीं हुई है। इसीलिए इसके महामारी का रुप धारण करने का खतरा है।
फिलहाल दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो अपने को एच। एन। वायरस के संक्रमण से पूरी तरह महफूज समझ रहा होगा।
मिश्र मानते हैं कि स्टार एनाइस के स्वाइन फ्लू के संक्रमण के खिलाफ रक्षा कवच मानने की खबर से दुनिया के अन्य देशों में भी इस बीमारी से निपटने के लिए देसी तरीकों की तलाश का सिलसिला शुरु हो सकता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5454672.html

ऐसे प्रशासन को चाटेंगे?

फरीदाबाद, [अनिल बेताब]। तपती दोपहरी में बलजीत पड़ोस के दरवाजे पर दस्तक देता है-दीदी! ठंडा पानी देना, फिर पानी पीकर घर लौट जाता है। मासूम चेहरा, हाथ-पैर सूखे हुए तथा पेट फूला हुआ यह किशोर एचआईवी पीड़ित है, जो अब सिर्फ समाज के रहमोकरम पर जीवित है। प्रशासनिक व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास इसकी सुध लेने का समय भी नहीं है।
बलजीत के मां व बाप एचआईवी से पीड़ित थे, जिनकी मौत हो गई। सामाजिक संस्था की मदद से पढ़ने योग्य एक भाई व दो बहनों को एसओएस बालग्राम में भर्ती कराया गया है, लेकिन अब बलजीत [काल्पनिक नाम] जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। बलजीत के खाने-पीने की तो व्यवस्था जैसे-तैसे हो जाती है, लेकिन उसकी जिंदगी कैसे संवरे, वह कैसे स्वस्थ जीवन जिए, इस सवाल का जवाब पड़ोस के लोगों के पास भी नहीं है। दो दिन से बलजीत की हालत भी बहुत बिगड़ी हुई है।
तेज बुखार से पीड़ित बलजीत की मानसिक स्थिति भी बिगड़ती नजर आ रही है। गर्मी में भी वह अपने घर का दरवाजा बंद कर कोने में अंधेरे में कंबल लेकर लेटता है। यह हकीकत है चार नंबर निवासी उस किशोर की, जो अब बिल्कुल तन्हा है।
वैसे एक ओर सरकार लोगों के स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। एचआईवी एवं एड्स नियंत्रण के लिए केंद्र व राज्य सरकार के अरबों रुपये खर्च किए जा रहे है। इसके बावजूद आज भी ऐसे कई परिवार व लोग है, जिनका जीवन रोगग्रस्त होने के बावजूद राम भरोसे चल रहा है।
एनआईटी के चार नंबर क्षेत्र के बलजीत के परिवार की हकीकत इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग की नजर में गरीब, बेसहारा व मजबूर लोगों के जीवन की कोई अहमियत नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5455102.html

शुक्रवार, 8 मई 2009

इस अमिताभ को क्या हो गया

रामू की बात हम नही करते, रामू तो रामू है। मुंबई में जब हमला हुआ तब ये जनाब होटल ताज में पर्यटन कर रहे थे। इसने तो देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी की अपेक्षा करना ही फिजूल है। लेकिन इस अमिताभ को क्या हो गया, जो रामू की ताल में ताल मिलते नज़र आ रहे है।
फ़िल्म रन कहे विवादास्पद गाना सेंसर कर दिया गया है, लेकिन बात यही पैर ख़त्म नही हो जाती है। यह तो इस बहस की शुरुवात है की जनभावानाओ का व्यवसायीकरण किस हद तक खतरनाक हो चला है। हरिवंश राय बच्चन और तेज़ी बच्चन के सुपुत्र अमिताभ बच्चन से अकल की उम्मीद तो की ही जा सकती है की वे राष्ट्र के मन-अपमान को समझ सकें, अमर सिह जैसे समाजवादियों की सोहबत में उन्होंने फ़िर क्या सीखा ? अमिताभ इस देश के महानायक कहे जाते है और उनके किए का अनुसरण करने वाले भरी तादाद में मौजूद है। लोग उनकी इज्ज़त करते है, इसके बावजूद की परदे से बहार उन्होंने सार्वजनिक हित का कोई बड़ा खूंटा कभी उखाडा हो ऐसा नज़र तो नही आता। परदे पर उन्हें बुरइयो से लड़ता देख कर मासूम देश ने नायक मान लिया।
जब अमिताभ जन गन मन को तोड़ मरोड़ कर गाते नज़र आते है तो यह मान लेना मुर्खता होगी की उन्हें अपनी करतूत का अंदाजा नही होगा। यह बुजुर्ग नायक आम आदमी से कही ज़्यादा अक्लमंद है और कानून कायदे जनता समझता है। बस यही पर अमिताभ कहे अपराध ज़्यादा गंभीर हो जाता है।
रामू तो सयाना है ही, यह तर्क कितना बचकाना है की जन गन मन के नए रूप में देश के वर्तमान हालत को पेश किया गया है। जिस लाइन को गाने से देश की छाती फूलती हो, जिसे गाने से मज़बूत राष्ट्र का अहसास होता हो, उसमे नकारात्मक ध्वनियाँ भरने कहे हक़ रामू या अमिताभ को किसने दिया? रामू अपने गीत में देश के हालत जितने बुरे बताना चाहते है, क्या सचमुच उतने बुरे हालत है? पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा क्या सचमुच में आपस में लड़ मर रहे है? यदि लोगो में एक-जुटना नही होती तो पंजाब कब का अलग हो गया होता, कश्मीर में साजिशें कामयाब हो चुकी होती, मराष्ट्र से अमिताभ बेदखल कर दिए गए होते, गुजरात मुस्लिम विहीन हो गया होता।
असल में किसी मुद्दे को सनसनीखेज़ बना कर कैसे पैसे कमाए जाते है ये बात रामू जैसे लोग खूब जानते है। अमिताभ जैसे लोग जब उनकी सोहबत में नज़र आते है तो ज़्यादा दुःख होता है।
अमिताभ ये देश आपकी इज्ज़त करता है, आप इसे बनाये रखें
-आजभी

एक विधायक ऐसा भी


http://www.dailychhattisgarh.com/today/Page%2012.pdf



गुदडी की लाल

सीहोर (मध्य प्रदेश)। इरादे पक्के हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। मध्य प्रदेश के छोटे से जनपद सीहोर की 23 वर्षीय प्रीति मैथिल ने इस बात को सच कर दिखाया है। हर तरह की विपरीत परिस्थितियों से पार पाते हुए मजदूर की बेटी प्रीति पहले ही प्रयास में आईएएस बनने में कामयाब रही।
प्रीति ने इस साल की भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में 92वीं रैंक हासिल की है। अपनी इस सफलता का पूरा श्रेय प्रीति अपने माता-पिता को देती हैं। स्थानीय रफी अहमद किदवई कृषि कालेज से स्नातक प्रीति ने कहा, 'आर्थिक तंगी के बावजूद पिता ने मेरी पढ़ाई नहीं रुकने दी। माता-पिता हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे। उन्होंने कभी भी मुझे गरीबी का अहसास नहीं होने दिया।' प्रीति आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली शायद सीहोर की पहली व्यक्ति हैं।
प्रीति ने कृषि और भूगोल विषयों के साथ आईएएस परीक्षा में सफलता हासिल की। आईएएस बनने के बाद खेती-बाड़ी को किसानों के लिए लाभदायक कारोबार बनाना प्रीति का मुख्य लक्ष्य होगा।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5451092.html

गुरुवार, 7 मई 2009

जजिया क्यो ?

नई दिल्ली। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने पाकिस्तान के कुछ तालिबानी नियंत्रण वाले इलाकों में सिखों पर जजि़या [कर] थोपने को अन्यायपूर्ण और इस्लाम तथा मानवता के विरुद्ध बताया और कहा कि दुनिया के किसी भी इस्लामी देश में जजि़या व्यवस्था नहीं है।
जामिया के लगभग 20 विभागों के शिक्षकों ने संयुक्त बयान में कहा, 'यह इस्लाम के नाम पर किए जाने वाला चिंताजनक और दुखद गैर-इस्लामी कार्य है..और पाकिस्तान के धर्मगुरुओं तथा बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे अपनी सरकार पर इस अन्यायपूर्ण क्रियाकलापों को रोकने का दबाव बनाएं।'
विश्वविद्यालय के इस्लमी अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अख्तरूल वासे ने कहा, 'जजि़या की धार्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह है कि यह इस्लामी हुकूमत में उन लोगों पर लगाया जाता था जिन पर युद्ध में विजय प्राप्त की हो। मगर जजि़या देने वालों को कोई अन्य कर नहीं देना होता था। लेकिन सरकारी नौकरी स्वीकार कर लेने पर उन्हें जजि़या भी नहीं देना होता था।' उन्होंने कहा, वर्तमान शासन व्यवस्था में सामान्य नागरिकों की तरह अल्पसंख्यक भी सभी प्रकार के टैक्स अदा करते हैं। राज्य के सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी रहती है। ऐसी राज्य व्यवस्था में अल्पसंख्यकों पर जजि़या लगाने का कोई औचित्य नहीं है।
बयान में कहा गया कि विश्व विख्यात दारुल उलूम देवबंद के विद्वानों सहित लगभग सभी मुस्लिम विद्वान बीसवीं सदी के आरंभ में ही यह व्यवस्था दे चुके हैं कि अब पूरी दुनिया 'दारुल अहद' यानी एक संधि या समझौते के अधीन है। यही कारण है कि अब किसी भी इस्लामी देश में जजि़या के कानून अमल नहीं किए जाते हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/terrorism/5_19_5450341.html

९ साल की बच्ची को मिला तलाक (भारत में बाल विवाह के मामलों में क्या होता है?)

रियाद। कड़ी आलोचना और विद्रोह के बाद आखिरकार नौ साल की बच्ची को 50 वर्षीय पति से तलाक मिल गया। पिता ने कर्ज नहीं चुका पाने के एवज में अपनी आठ साल की लड़की की शादी दोस्त से कर दी थी। इस खबर के आने के बाद सऊदी अरब में मानवाधिकारों के हनन की अंतरराष्ट्रीय हलकों में कड़ी आलोचना हुई थी। आखिर मामले ने तूल पकड़ लिया।
हर तरफ हो रही कड़ी आलोचना और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद बच्ची को तलाक देना ही पड़ा। इस संबंध में दो याचिकाएं खारिज होने के बाद यह फैसला आया। सऊदी अरब में एक महिला अधिकार संगठन की संस्थापक वजेहा अल हैदर ने बताया कि यह अच्छा कदम है। आखिर दबाव में आकर उस व्यक्ति को तलाक देना पड़ा।
हैदर ने ही इस मामले में जागरूकता अभियान चलाया था। उन्हें उम्मीद है कि इस मामले के बाद देश में बाल विवाह प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाया जाएगा। पिछले साल लड़की की शादी हुई थी। तब वह आठ साल की थी। मां ने शादी का विरोध किया था और मामले को अदालत तक ले गई। इस घटना के बाद सऊदी अरब में शादी की न्यूनतम उम्र तय करने को लेकर बहस छिड़ गई है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/oddnews/general/15_35_2582.html
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अब इसे आप क्या कहेंगे

परीक्षा में नकलची छात्रों को पकड़ने वाली यूनिवर्सिटी के सर्वेसर्वा खुद नकल के आरोपों से घिरते नजर आ रहे हैं। देवी अहिल्या विवि के प्रभारी कुलपति प्रो। राजकमल पर अन्य वैज्ञानिकों की रिसर्च को खुद के नाम से पेश करने का मामला चल रहा है। प्रभारी कुलपति द्वारा नकल करने के मामले की शिकायत राजभवन से लेकर यूजीसी तक भी पहुँची है। यूनिवर्सिटी ने पाँच साल पुराने मामले पर अंतिम निर्णय नहीं दिया है। इधर नियमित कुलपति बनने की दौड़ में शामिल प्रो. राजकमल ने इस मामले को चरित्र हनन की कोशिश करार दिया है। प्रभारी कुलपति द्वारा की गई नकल का जिन्ना बरसों बाद फिर बोतल से निकल आया है। हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत यूनिवर्सिटी से इस मामले की जानकारी माँगी गई है। इतना ही नहीं प्रभारी कुलपति के खिलाफ एक बार फिर राजभवन में शिकायत कर दी गई है। सूत्रों के मुताबिक राजभवन ने भी यूनिवर्सिटी से स्पष्टीकरण माँग लिया है। नकल के मामले में की गई जाँच और कार्रवाई का ब्योरा माँगा गया है। हूबहू नकल जनवरी-२००४ में प्रो. राजकमल ने कम्प्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) के जरनल में प्रकाशित करने के लिए एक रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था। डॉ. राजकमल ने "रियल टाइम स्केलेबल प्रॉयोरिटी क्यू फॉर हाई स्पीड पैकेट स्वीचेस" शीर्षक वाले इस पेपर को कर्नाटक की कृष्णाकोविल यूनिवर्सिटी के एमई के छात्र सरदार इरफानउल्लाह के साथ मिलकर लिखा था। उस समय प्रो. राजकमल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस में नियुक्त थे और दो साल की छुट्टी लेकर कर्नाटक की यूनिवर्सिटी में अध्यापन कर रहे थे। प्रकाशन के लिए पेपर देने के बाद सीएसआई की ओर से इसे लौटा दिया गया था। सीएसआई के रैफरी की ओर से प्रो. राजकमल के पेपर के अधिकांश हिस्से को वर्ष-२००० में आईईईई के जरनल ट्रांसजेक्शन ऑन कम्प्यूटर्स के अंक ४९ में छपे एक शोध की नकल करार दिया था। इसको तीन विदेशी शोधार्थियों ने अंजाम दिया था। बाद में सीएसआई ने रैफरी की टिप्पणी और नकल किए पेपर की सूचना स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस को कार्रवाई के लिए भेज दी थी। यूजीसी ने भी माँगा था जवाब२००४ में स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस के हेड रहे डॉ. एपी खुराना ने नकल की शिकायत राजभवन और यूजीसी तक पहुँचाई थी। इसके बाद यूजीसी द्वारा ३१ मार्च-२००७ को पत्र लिखकर यूनिवर्सिटी से इस पूरे मामले पर आगे की कार्रवाई करने के लिए कुलपति से टिप्पणी माँगी थी। हालाँकि उसके बाद यूनिवर्सिटी की ओर से यूजीसी को कोई कमेंट नहीं भेजा गया। डॉ. खुराना के अनुसार डिपार्टमेंट हेड होने के नाते सीएसआई जरनल के एडिटर ने उन्हें प्लेगिरिज्म (साहित्यिक चोरी) की शिकायत सौंपी थी। उन्होंने इसे यूनिवर्सिटी में फाइल कर दिया था। इसके बाद क्या कार्रवाई हुई यह उन्हें नहीं पता।

http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx

नकेल

संबलपुर। जिला प्रशासन के दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच तनातनी शुरू हो जाने से न्याय की आस लगाए आदिवासियों की चिंता बढ़ गयी है। भू-माफिया के लोगों ने गरीब आदिवासियों की जमीन फर्जीवाड़ा कर बेच दिया है। गरीब आदिवासी इसकी गुहार अतिरिक्त उपजिलाधीश व बंदोबस्त अधिकारी अशोक कुमार पुरोहित से करने के बाद घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। श्री पुरोहित पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश कर रहे है, लेकिन इसी बीच जिलाधीश प्रदीप्त कुमार पटनायक ने उन पर लगाम कस दिया है।
जिलाधीश श्री पटनायक ने सदर उपसंभाग के तहसीलदारों और जिला ट्रेजरी अधिकारी को निर्देश जारी किया है कि चार मार्च, 2009 के बाद अतिरिक्त उपजिलाधीश के किसी भी आदेश का पालन नहीं किया जाये। जिलाधीश श्री पटनायक ने बताया है कि अतिरिक्त उपजिलाधीश का अन्यत्र तबादला हुआ है और उनके रीलिव होने के बाद के किसी भी आदेश का पालन नहीं किया जाए। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान अतिरिक्त उपजिलाधीश श्री पुरोहित ने यहां करोड़ों रुपये के भूमि घोटाले का पर्दाफाश किया है। सरकारी दस्तावेजों में मृत बताकर गांगी मुंडा नामक एक महिला के जमीन हड़प लिए जाने की घटना उजागर कर उसकी जमीन की खरीद-फरोख्त को अवैध करार दिया है। उन्होंने सदर तहसीलदार को निर्देश दिया था कि गांगी मुंडा को उसकी जमीन का रेकार्ड दिया जाए। ऐसे में श्री पुरोहित के तबादले या उनका निर्देश नहीं माने जाने से यह मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है। इसे लेकर भू-माफिया की फर्जीवाड़े का शिकार हुए आदिवासियों में न्याय मिलने को लेकर चिंता देखी जा रही है। इसी तरह एक और मामला इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। जिला का एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आपस में मिलने से कतराने लगे है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_5449087.html

जूते किधर है

आईजी सहित आठ गिरफ्तारनई दिल्ली। नक्सलियों से ल़ड़ने के लिए बनाए गए कोबरा बल में भर्ती घोटाले में सीबीआई ने सीआरपीएफ के आईजी को गिरफ्तार किया है। महानिरीक्षक के अलावा सात अन्य को भी गिरफ्तार किया गया है। विशेष कोर्ट ने उन्हें ६ दिन की पुलिस रिमांड पर सीबीआई को सौंप दिया।बिहार रेंज के आईजी पुष्कर सिंह को पटना से गिरफ्तार किया, जबकि कमांडेंट यजबिंदर सिंह और निलंबित कांस्टेबल मुकेश कुमार को झारखंड से गिरफ्तार किया गया है। मुकेश दलालों का सरगना है। सीबीआई के अतिरिक्त महानिदेशक हर्ष भाल के मुताबिक पुष्कर सिंह के पास से २३ लाख रु. नकद, १५ लाख रु. की एफडीआर, किसान विकास पत्र तथा बेहिसाब संपत्ति के दस्तावेज बरामद किए गए हैं। कुमार की तीसरी पत्नी स्वाति के पास से ७० लाख रु. मिले, उसे भी गिरफ्तार किया गया है। पक़ड़े गए अन्य व्यक्तियों में घोटाले के दलालों के सरगना मुकेश कुमार के साथी सिंधूनाथ शर्मा और पप्पू कुमार शामिल हैं। सीआरपीएफ बटालियन के कमांडेंट परगट सिंह को भी गिरफ्तार किया गया है। मुकेश कुमार की पहली पत्नी का भाई त्रिपुरारी कुमार उर्फ बबलू भी गिरफ्तार किया गया है।

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शिक्षाकर्मी भर्ती में फर्जीवाडा

नवागढ़ में सन्‌ २००७ में हुए शिक्षाकर्मी भर्ती फर्जीवाड़ा में बुधवार को अचानक नया मोड़ उस समय आया जब नवागढ़ के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी बीएस सिदार को गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। उनकी गिरफ्तारी पुलिस अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय बेमेतरा में हुई। उनके खिलाफ धारा ४२०, ४६७, ४६८, ४७१, ३४ के तहत कार्रवाई की गई है। वे वर्तमान में रायपुर जिला पंचायत में अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं।गौरतलब है कि बीएम सिदार वर्ष २००७ में नवागढ़ में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर पदस्थ थे। उस समय शिक्षाकर्मी भर्ती में व्यापक पैमाने पर फर्जी प्रमाणपत्रों का खुलकर उपयोग कर नियुक्तियाँ दी गई थीं।

http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx

बुधवार, 6 मई 2009

एक तो नाप गया, चलो और pakden

भुवनेश्वर। रिश्वतखोरी के एक पुराने मामले की सुनवाई करते हुए निगरानी विभाग की विशेष अदालत ने नयागढ़ स्थित दशपल्ला के तत्कालीन सीडीपीओ रितांजलि पटनायक को छह माह सश्रम कारावास तथा एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना नहीं देने पर दोषी को एक माह अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। उल्लेखनीय है कि गत माह अगस्त, वर्ष 2008 में दशपल्ला के पूर्व सीडीपीओ रितंाजलि पटनायक ने माध्यमिक आंगनबाड़ी केंद्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बिनोदिनी देई से उसके बकाये एरियर के भुगतान के लिए बतौर रिश्वत दो हजार रुपये की मांग की थी।

आओ अमित बनें

सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग): मालदा स्थित गौर बंग विश्वविद्यालय के व्याख्याता डा. अमित भंट्टाचार्य आंख वालों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। नेत्रहीन होने के बावजूद उन्होंने महज एक वर्ष ग्यारह माह में पीएचडी कर दिखाया। इतना ही नहीं उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय की निगरानी में अपना शोध पूरा करने वाले डा. अमित के नाम कई अन्य उपलब्धियां हैं। उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के 41 वें दीक्षांत समारोह में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान की। डा.अमित रंटनायटिज पीगयेटोजा के शिकार हैं। अपने जीवन में आये इस तूफान को उन्होंने चुनौती के रूप में ली। फिर क्या था जीवन की कठिन डगर आसान बनती गयी और एक के बाद एक खड़ा हो गया उपलब्धियों का पहाड़। शिक्षा के प्रति लगन व कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने अलीपुरद्वार जंक्शन रेलवे हायर सेंकेंड्री स्कूल माध्यमिक व उच्च माध्यमिक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण किया। जब वह उच्च माध्यमिक की पढ़ाई कर रहे थे तभी रेटनायटिज पीगमेंटोजा के शिकार हो गये थे। इसके बावजूद उन्होंने अलीपुरद्वार कालेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी। उसी कालेज से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में आनर्स किया और फिर वर्ष 1997 में उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर। स्नातकोत्तर में उन्हें प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान हासिल हुआ। वर्ष 2008 के दिसंबर में हई स्लेट परीक्षा में वे न सिर्फ उत्तीर्ण हुए, बल्कि विश्वविद्यालय के पहले रिसर्च फेलोशिप भी हुए। उन्होंने उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के डा. इरशाद गुलाम अहमद के अधीन पीएचडी पूरी की। उनके शोध का विषय था 'द पोयटिक्स आफ रेजीसटेंस : ए स्टडी आफ मारजीनल भ्वायसेस इन द पोयट्री आफ कमला दास'। आलोचक कवियत्री कमला दास की कविताओं को यौन वर्जनाओं का केंद्र मानते हैं। डा. अमित अपने शोध में इन धारणाओं को खारिज करते हुए दर्शाया कि उनकी कविताओं में आम जीवन की समस्याएं भी शुमार हैं। यह पूछे जाने पर कि सौ फीसदी दृष्टिहीन होने के बावजूद आपने किस तरह ये उपलब्धियां हासिल की, उन्होंने कहा कि हम बोलकर दूसरों से लिखवाते हैं। इस कार्य में उनकी पत्नी सौमा भादुड़ी भंट्टाचार्य का बड़ा योगदान है। वह उनकी सहपाठी भी रह चुकी हैं। वह यह जानते हुए भी कि डा. अमित सौ फीसदी दृष्टिहीन हैं, उनसे शादी की। सौमा कहती हैं कि मैं अमित को पाकर खुद को भाग्यवान समझती हूं।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/westbengal/4_13_5447602.html

मंगलवार, 5 मई 2009

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

आगे बदो तजिन

इस्लामाबाद। पाकिस्तान की एक युवती ने एक लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर एक समूह तैयार किया है जो तालिबान का विरोध कर रहा है।
यह समूह देश में इस्लामी कानून लागू करने की आतंकियों की मांग और उनकी गतिविधियों में आई तेजी की पृष्ठभूमि में तैयार किया गया है। फेसबुक में 'ए वायस अगेन्स्ट शरीया अपोलोजिस्ट' में लिखे एक परिचय नोट मे कहा गया है 'यह समूह आधिकारिक तौर पर उन सभी राजनीतिक गतिविधियों का विरोध करता है जो तालिबान, शरीया अदालतों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का समर्थन करती हैं। हम पाकिस्तान के करदाता नागरिक हैं और तालिबान का विरोध करते हैं।' तजीन जाय द्वारा बनाए गए इस समूह में अब तक 425 पाकिस्तानी शामिल हो चुके हैं। तजीन कराची में रहती हैं और ब्लाग लिखती हैं। उनके ब्लाग 'वायसअगेन्स्टशरीयाअपोलोजीस्ट्स डाट काम' का शीर्षक 'पहले इन्सानियत, फिर शरीयत' है।
समूह की सह संस्थापक अस्मा शहाब कहती हैं, 'जितना हो सके, उतने अधिक लोगों को विरोध दर्ज कराने के लिए सक्रिय करना महत्वपूर्ण है।' पिछले माह इस समूह से जुड़े ओवैस कुरैशी ने कहा कि हां, हम पाकिस्तान वापस चाहते हैं। तालिबान नेतृत्व के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन का मामला चलाया जाना चाहिए।
http://in.jagran.yahoo.com/news/international/terrorism/3_25_5445355.html

तालियाँ

संबलपुर : एक आदर्श पत्‍‌नी के बजाए अधिक दहेज का लोभ रखने वाले एक वर को बगैर वधू के वापस लौटना पड़ा। पढ़ी-लिखी भावी वधू ने किसी दहेजलोभी के साथ विवाह करने से साफ करते हुए भावी वर को वापस लौटा दिया।
शनिवार की रात धनुपाली अंचल में रहने वाले एक संभ्रांत परिवार ने अपनी पुत्री के लिए साफ्टवेयर इंजीनियर वर को चुना था। दहेज के लेन-देन की बात भी हो चुकी थी। तय दिन पर संबंधित वर पक्ष बारात लेकर संबलपुर पहुंचा। गाजे-बाजे के साथ भावी वधू के घर पहुंचे, जहां उनका स्वागत किया गया। बताया जाता है कि जब भावी वर विवाह मंडप पर पहुंचा तो दहेज में और सामान देने की मांग करने लगा। वधू पक्ष ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वर नहीं माना। इसका पता वधू वेश में सजी युवती को चला तो उसने ऐसे दहेजलोभी से विवाह करने से साफ इंकार कर बारात को बैरंग लौटा दिया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_5443076.html

सोमवार, 4 मई 2009

डिजिटल रेप पर सज़ा तय हो

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त कानून के अभाव में महिलाओं का विभिन्न प्रकार से यौन उत्पीड़न करने वाले मुजरिमों को कम सजा देने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह विधि आयोग की रिपोर्ट पर विचार करने के साथ ही दुष्कर्म की परिभाषा का दायरा बढ़ाते हुए उसमें ‘डिजिटल रेप’ को भी जोड़े। किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा कंप्यूटर से छेड़छाड़ करने को ‘डिजिटल रेप’ माना जाता है।
जस्टिस एस मुरलीधर ने इस शब्द का इस्तेमाल उंगलियों से स्त्री की लज्जा भंग करने के संदर्भ में किया है। इस जुर्म को बॉटम पिंचिंग जैसा मानते हुए संबंधित मामले का निपटारा आईपीसी के सेक्शन 354 के तहत किया जाता है। चार पुत्रियों के पिता व मुजरिम तारा दत्त (54) से जुड़े इस मामले ने पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख केपीएस गिल के मामले की यादें ताजा कर दी हैं।
(दैनिक भास्कर से साभार)

रविवार, 3 मई 2009

किसानो की आत्महत्या पर आमिर की फ़िल्म

नई दिल्ली। आजादी के पहले किसानों की समस्या को लेकर हिट फिल्म लगान बना चुके मशहूर अभिनेता आमिर खान अब आजादी के बाद उनकी आत्महत्या की पृष्ठभूमि पर फिल्म बना रहे हैं।
आमिर खान प्रोडक्शन की यह नई फिल्म द फालिंग निर्माण के अंतिम चरण में है। किसानों की आत्महत्या जैसे गंभीर एवं संवेदनशील विषय को उठाकर यह फिल्म संवेदनाओं को झकझोर सकती है। फिल्म से जुड़े सूत्रों ने बताया कि द फालिंग में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं की पृष्ठभूमि तो हैं ही मगर इसमें मीडिया की गैर जरूरी अति सक्रियता और नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भी बखिया उधेड़ी गई है।
फिल्म की निर्देशिका अनुशा रिजवी से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि यह कहना उचित नहीं होगा कि फिल्म का विषय वस्तु किसानों की आत्महत्या ही है। इसके अलावा बहुत कुछ और भी है। आमतौर पर आमिर अपनी फिल्मों के विषय के बारे में बेहद गोपनीयता बरतते हैं। संभवत: इसी कारण से उनकी यूनिट के सदस्य फिल्म की विषय वस्तु को लेकर खुलकर बात करने को तैयार नहीं हैं।
सूत्रों ने बताया कि फिल्म के क्लाईमेक्स में नत्था नाम का किसान आत्महत्या का प्रयास करता है जिसको लेकर विभिन्न टीवी चैनलों और नेताओं की सक्रियता बढ़ जाती है। जहां मीडिया इस घटना का इस्तेमाल अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए करता है वहीं नेता इस घटना की आड़ में अपनी राजनीति की रोटी सेंकना चाहते हैं।फिल्म किसानों की आत्महत्या पर घडि़याली आंसू बहाने वालों को धिक्कारती है। http://in.jagran.yahoo.com/news/entertainment/news/210_230_207217.html (साभार)

शनिवार, 2 मई 2009

महारानी की जय हो

लंदन। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को 2008 में 5,00,000 यूरो से ज्यादा की यूरोपीय कृषि सब्सिडी मिली।
ग्रामीण मामलों के विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, महारानी एलिजाबेथ को उनके सैंडरिंघम फार्म के लिए 4,73,583.31 पौंड [लगभग 7,00,000 डालर या 5,30,000 यूरो] की सब्सिडी मिली।
संडे टाइम्स की ब्रिटेन के अमीरों की सूची में महारानी 214वें स्थान पर हैं। उनकी कुल परिसंपत्तियां 27 करोड़ पौंड की हैं। उनके बडे़ पुत्र प्रिंस चा‌र्ल्स को कुल 1,81,485. 54 पौंड की राशि कृषि सब्सिडी के रूप में मिली।
यूरोपीय संघ द्वारा दी जा रही सब्सिडी का सबसे ज्यादा फायदा ब्रिटेन की महारानी को मिला है यूरोपीय संघ के कुल बजट में से 40 फीसदी सब्सिडी में चला जाता है। नेस्ले को सब्सिडी के रूप में 10,18,459. 69 पौंड की राशि मिली, जबकि टेट एंड लायले को 9,65,796. 78 पौंड की राशि दी गई।
http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_5435953.html

(साभार)

भगवन भरोसे देहात

अलीगढ़। डायरिया के मरीजों की भरमार के बावजूद देहात के कई अस्पतालों में तैनाती के बावजूद डॉक्टर नहीं जा रहे। 'साहब' की गैरहाजिरी से दूसरे कर्मचारी भी मनमर्जी पर उतारू हैं। एसीएमओ ने गुरुवार को कई अस्पतालों का निरीक्षण किया तो पोल खुली। एक दिन में चार डॉक्टर व आठ कर्मचारी ड्यूटी से नदारद मिले।
एसीएमओ डा। डीके पटेरिया ने गुरुवार को निरीक्षण किया। सुबह 8:40 बजे गभाना स्थित स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे और कई 'ड्यूटीचोरों' को पकड़ा। न तो यहां तैनात डॉ. शाइस्ता कबीर ही मिलीं और न ही उनके तमाम कारखास ही। रिकार्ड देखने से खुलासा हुआ कि डॉ. कबीर तो बुधवार को भी नहीं आई थीं। वार्ड ब्वाय मदनपाल, वार्ड आया विमलेश, डेंटल असिस्टेंट ओबेदुल्ला खान व बीएसडब्ल्यू राधेश्याम भी नहीं पहुंचे थे। एसीएमओ ने सभी को गैरहाजिर किया और पहुंच गए चंडौस। यहां साढ़े नौ बजे तक डॉ. बृजमोहन शर्मा नहीं पहुंचे थे। एचवी कुसुम कुमारी भी ड्यूटी पर नहीं थीं। पिसावा में पौने दस से साढ़े दस बजे तक एसीएमओ रुके। यहां के डॉ. सतेंद्र कुमार नहीं मिले। सिर्फ स्वीपर व वार्ड ब्वाय ही थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_5437276_1.html (साभार)

दोस्तों,

सतही तौर पर तो यह छोटी सी ख़बर है, लेकिन यह पूरे देश कहे हल बयां करती है। ख़बर यह नही है की सरकारी कर्मचारी नदारत है, ख़बर तो यह है किसी ने तो कहीं छापा मारने की तकलीफ की। ऐसे छापो की जरुरत देश के हर गानों-शहर में हर रोज है। निजीकरण की आंधी ऐसी चली की मूलभूत सेवाएँ भी ले उडी।बात चाहे शिक्षा की हो या चिकित्सा की, उद्योगपति और व्यापारी दोनों हाथो से दौलत दुह रहे है। सरकारी सेवाएँ नाम भर की रह गई है। जिसकी जेब में पैसा ना हो वो ना तो सही शिक्षा हांसिल कर पा रहा है और ना ही इलाज़। देखा जा रहा है की सरकारी नौकरों ने भी अपनी-अपनी दुकाने तान ली है। यह भी पाया जा रहा है की सार्वजनिक सेवाओ को नेस्तनाबूद करने निजी तंत्र साजिशें रच रहा है।यह प्रवृत्ति अब निचले इस्टर तक पसर चुकी है। संचार क्षेत्र में बीएसएनएल ने अपना वर्चस्व लंबे समय तक कायम रखा, अच्छे नेटवर्क और सस्ती काल की वज़ह से उसकी मोबाईल सेवा तेजी से लोकप्रिय हुई थी, लेकिन शीघ्र ही यह अलोकप्रिय भी हो गई। ऐसा कहा जाता है की निजी कंपनियों से अफसरों की मिलीभगत का यह परिणाम था। अभी एक वाक्य रायपुर रेलवे स्टेशन पर पेश आया। प्लेटफार्म के सभी सार्वजनिक नल इसलिए बंद कर दिए गए थे ताकि महंगे मिनिरल वाटर की खपत बड़ाई जा सके।

इन छोटी बड़ी साजिशों से सत्ताधीश बेखबर कैसे हो सकते है? ये इतने तो मासूम नही है। कितनी ही निजी कंपनियों में इनकी भागीदारी है, कितनी को इनका आर्शीवाद प्राप्त है, कितनी ही इनकी ख़ुद की है। इन व्यापारी राजनीती बाजो के हथकंडो की शिकार जनता हो रही है। ......देश कहाँ जा रहा है?

-आजभी

धान खरीदी पर ऊँगली

रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार पर धान खरीदी में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है तथा सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष धनेंद्र साहू ने शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रमन सरकार ने राज्य में 41 लाख टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा था और 37 लाख टन धान की खरीदी की गई। लेकिन राज्य के 33 तहसीलों में सूखा पड़ने के बाद भी 37 लाख टन धान की खरीदी करना संदेह को जन्म दे रहा है।
साहू ने आरोप लगाया कि राज्य शासन के कुछ लोगों की मिलीभगत से बडे़ व्यापारियों ने दूसरे प्रदेशों का धान लाकर यहां बेचा है जिसके कारण राज्य को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने इस मामले में लगभग 15 सौ करोड़ रुपये का घोटाला होने का आरोप लगाया और कहा कि सरकार इस मामले की सीबीआई से जांच कराए और श्वेत पत्र भी जारी करे।
उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस मामले की जांच नहीं कराती है तब उनकी पार्टी इस मामले को लोक आयोग के पास लेकर जाएगी।
साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धान उत्पादन का औसत प्रति एकड़ 15 क्विंटल का है लेकिन धान खरीदी के दौरान जिस किसान के पास तीन एकड़ खेत है उससे भी तीन सौ क्विंटल धान खरीदा गया। इससे साफ जाहिर होता है कि धान खरीदी में करोड़ों का भ्रष्ट्राचार किया गया है।
धनेंद्र साहू ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि बड़े व्यापारियों ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के भोले भाले किसानों को कुछ धन का लालच देकर उनसे ऋण पुस्तिका हासिल कर लिया तथा दूसरे प्रदेशों से धान लाकर यहां ज्यादा कीमत में बेच दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि ऐसे व्यापारियों को राज्य शासन के कुछ लोगों का संरक्षण प्राप्त है। यदि इस मामले की जांच कराई जाती है तब इसका खुलासा हो सकेगा।

http://www.blogger.com/post-create.g?blogID=5774082726915353722 (साभार)

सवाल दर सवाल है

बोफोर्स रिश्वत कांड में अभियुक्त ओत्तावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस वापस लेने से सीबीआई की तत्परता पर भी सवाल उठने लगे हैं। सीबीआई ने जितनी जल्दबाजी में क्वात्रोच्चि का नाम वापस लिया उतनी तत्परता वेबसाइट को अपडेट करने में बिल्कुल नहीं दिखाई है। सीबीआई की वेबसाइट पर कई ऐसे नाम अभी भी हैं जो इस दुनिया में नहीं है।वेबसाइट की खामियों को देखकर कोई भी कह सकता है कि सीबीआई शायद ताजा घटनाओं से अपडेट नहीं है। लेकिन गुरुवार की देर शाम उठ रहे सवालों के बाद सीबीआई ने अपनी वेबसाइट पर यह बताया कि किन स्थितियों में रड कार्नर नोटिस वापस लिया जा सकता है। लेकिन सीबीआई ने यह नहीं बताया कि यह जानकारी क्वात्रोची मामले से संबंधित है। क्वात्रोच्चि का नाम सीबीआई की सूची से हटने के बाद कई राजनीतिक दलों ने सीबीआई को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस को छोड़ भाजपा, सपा, बसपा ने सीबीआई की कामकाज की शैली पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। सीबीआई की सूची में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मास्टर माइंड लिट्टे सरगना प्रभाकरण का नाम नहीं है। इसी प्रकार अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई नूरा कास्कर की पिछले माह कराची में हत्या कर दी गई। इसके बावजूद उसका नाम वेबसाइट पर अब भी मौजूद है। वहीं, 1993 में मुंबई बमकांड का आरोपी मुस्तफा दोसा मुंबई पुलिस की हिरासत में है। बावजूद इसके वह भी मोस्ट वांटेड लिस्ट में हैं। सीबीआई पर भाजपा ने भी सवाल खड़ा किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली के मुताबिक सीबीआई का गठन भ्रष्टाचार के बड़े मामलों का अन्वेषण करने और सरकार के कार्यसंचालन में शुचिता बनाए रखने के लिए किया था। लेकिन आज सीबीआई अभियुक्तों को क्लीन चिट दिलवाने में उनके साथ सांठ-गांठ करती पाई जाती है।

http://www.bhaskar.com/business/article.php?id=14760 (साभार)

शुक्रवार, 1 मई 2009

आग के बाद क्या? ....राख..

एक दंगे के 30 साल
काशिफ-उल-हुडा

1979 के इसी अप्रैल महीने में, जमशेदपुर में हिन्दू-मुस्लिम दंगे ने 108 लोगों की जानें ले ली थीं. मरने वालों की संख्या 114 भी हो सकती थी, लेकिन मैं और मेरे परिवार के लोग ज़िंदा बच गये, शायद इसलिए कि आज 30 साल बाद उस दिल दहला देने वाली घटना को बयान कर सकें. यह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा तब हुआ था, जब मेरी उम्र केवल 5 साल थी. परन्तु इस हादसे की यादें मेरे मस्तिष्क में साफ-साफ उभरी हुई हैं और दुर्भाग्य से ये मेरी प्रारंभिक जीवन की चुनिंदा यादों में से है. इस बात को पूरे 30 साल गुजर चुके हैं लेकिन इस हादसे के भयानक दृश्य आज भी ताज़ा हैं.
11 अप्रैल 1979 को उस दिन हवा में तनाव के कुछ भयानक संकेत थे. पता नहीं कैसे, मेरी माँ को यह संकेत समझ में आ गए और वो रामनवमी के दिन, अपने भाई और दो छोटी बहनों के साथ पास के मुसलमान इलाके, गोलमुरी में चली गयीं. मेरे पिताजी आदर्शवादी थे और उन्हें पूरा भरोसा था कि कुछ नहीं होगा. यदि कुछ हो भी गया तो पिताजी ने एक हिन्दू व मुसलमान लोगों का संयुक्त रक्षा दल बनाया हुआ था और उन्हें उम्मीद थी कि यह दल हिन्दू और मुसलमान गुटों के आक्रमण से बचायेगा.मैं और मेरा भाई, जो मुझसे 2 साल बड़ा है, पिताजी के साथ रुक गए और मेरी माताजी और बहनें सुबह को गोलमुरी चली गयीं. जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, वैसे-वैसे लोगों की भीड़ बाहर बढ़ने लगी. मेरा भाई कुछ परेशान होने लगा और दोपहर के खाने के समय तक हमने अपने पिताजी को मना लिया कि वो हम दोनों भाइयों को माँ के पास गोलमुरी छोड़ आयें. जब हम लोग गोलमुरी में अपने रिश्तेदार कमाल चाचा के यहाँ भोजन कर रहे थे, लोगों के चिल्लाने की आवाजें आयीं कि दंगा शुरु हो गया है. यह देखने के लिए कि क्या हो रहा है, हम लोग जल्दी से बाहर गए और देखा कि कुछ ही दूरी पर धुआं उठ रहा था. इसके बाद की घटनाएं मुझे टुकड़े-टुकड़े में याद हैं. मुझे याद है कि हम जिस घर में रह रहे थे, वहाँ पर सिर्फ़ महिलाएं और बच्चे थे. मुझे यह याद है कि मैं खाना नहीं खाना चाहता था क्योंकि वह पूरी तरह से पका हुआ नहीं होता था. बहुत कम उम्र में ही बतौर शरणार्थी मेरे लिए जीवन का यह कड़वा अनुभव था. मुझे याद है कि रात में हम छत के ऊपर जा कर देखते थे, जहाँ से देख कर लगता था जैसे पूरा शहर ही जल रहा हो. मुझे यह भी याद है कि कोई मुझे चेतावनी दे रहा था कि ऊपर छत पर नहीं जाना चाहिए क्योंकि हमें आसानी से गोली का निशाना बनाया जा सकता है. मुझे यह भी याद है कि मैं अपने पिताजी से बहुत ही कम मिल पाता था और बहुत सहमा हुआ रहता था.कई सालों बाद पता लगा कि जमशेदपुर के टिनप्लेट इलाके में हमारा घर ही अनेकों स्थानीय मुसलमानों को शरण दिए हुआ था क्योंकि संयुक्त परिवारों में रहने वाले हिन्दू लोग धीरे-धीरे इस इलाके को छोड़ कर जा रहे थे.उस दिन, मेरे पिताजी कुछ सामान देने के लिए गोलमुरी आए हुए थे परन्तु जब वो वापस जाने को हुए तब तक कर्फ्यू लग गया था. इसलिए वो वापस नहीं पहुंच सके थे.उधर टिनप्लेट में रह रहे मुसलमानों ने देखा कि वो हर ओर से घिर रहे हैं, इसीलिए टिनप्लेट फैक्ट्री में वे लोग मदद मांगने गए. परन्तु वहाँ उन सब को उन्हीं के सहकर्मियों ने बर्बरतापूर्वक मार डाला. मेरे पिताजी सिर्फ़ इसलिए बच गए क्योंकि कर्फ्यू लग जाने की वजह से वो गोलमुरी से टिनप्लेट वापस नहीं जा सके थे.हमारा घर तो लुट गया था पर हम लोग भाग्यशाली थे क्योंकि और लोगों का तो सब कुछ जला कर राख कर दिया गया था. महीनों बाद हम सब एक नए इलाके में रहने के लिए गए, जिसका नाम एग्रिको कालोनी था, जो मुसलमानों की एक अन्य कालोनी भालूबासा के सामने थी. हालांकि इन घरों में नई पुती हुई सफेदी भी आग और लूट के दाग नहीं छुपा पा रही थी. हमें यह भी नहीं पता था कि इन घरों में किसी की हत्या हुई थी या नहीं, पर लूट के निशान सब तरफ साफ़ नजर आ रहे थे.समय बीतता गया और मेरी ऐसे अनेक लोगों से मुलाकात हुई, जिन्होंने जमशेदपुर दंगे को झेला था. इनमें से हरेक के पास उनके हिस्से की दिल दहला देने वाली कहानी थी.
मुझे एक महिला याद है, जिसके शरीर पर जलने के निशान थे. यह महिला उस एंबुलेंस में भी बच गई थी, जिसको यह सोच कर जलाया गया था कि एंबुलेंस के साथ-साथ उसके भीतर बैठे सभी लोग भी जल जायेंगे. इस दंगे के कई महीनों बाद रोज स्कूल जाते हुए हम उस जली हुई एंबुलेंस को देखते थे, जो पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी गई थी.मरने वाले जिन 108 लोगों का मैंने जिक्र किया, उसमें 79 मुसलमान थे और 25 हिंदू. बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे, जो घायल हुए थे. कुछ थे, जिनका सब कुछ खत्म हो गया था.
जमशेदपुर एक औद्योगिक शहर है, जहाँ टाटा की फैक्ट्रियां हैं। इस शहर में रहने वाले अधिकाँश लोग टाटा की इन्हीं फैक्ट्रियों में काम करते हैं। शहर का बहुत बड़ा हिस्सा टाटा की जागीर है, जिसके क्वार्टर में हर मजहब के लोग शांतिपूर्वक रहते आए हैं।यह समझ से परे है कि ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण और बर्बर कृत्य इस शहर में आखिर कैसे हुआ, जहाँ हर धर्म के लोग सद्भावना के साथ रहते थे. यहां रहने वाले अधिकांश लोग अविभाजित बिहार या देश के दूसरे हिस्सों के थे और कंपनी में ईमानदारी से काम करते हुए अपने घर-परिवार के पालन पोषण में खुश थे. जमशेदपुर के दंगों में सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं मरे, बल्कि हिन्दू भी तो मरे थे- तो फिर इस दंगे का लाभ किसको मिला था?जमशेदपुर के इस हादसे से कोई दस रोज पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख बाला साहेब देवरस ने जमशेदपुर का दौरा किया था और आह्वान किया था कि हिंदूओं को अपने हितों की रक्षा के लिए अब उठ खड़ा होना चाहिए. उसके बाद 11 अप्रैल 1979 को जमशेदपुर दंगों की आग में जलने लगा.तीस साल पहले जमशेदपुर में जिस व्यक्ति ने शहर को बंधक बना लिया था, उसका नाम था दीनानाथ पांडेय. स्थानीय विधायक. जीतेंद्र नारायण कमीशन ने माना कि इस दंगे में आरएसएस के विधायक दीनानाथ पांडेय की भूमिका रही है. इस घटना के बाद भाजपा ने दो बार बिहार विधानसभा के चुनाव में पांडेय को टिकट दी और पांडेय ने इस जमशेदपुर सीट को भारतीय जनता पार्टी के लिए 'सुरक्षित' सीट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. भारत में लोक सभा चुनाव होने को हैं. जब हम लोग यह टिप्पणी करते हैं कि राजनीति में गुंडे या अपराधी पृष्ठभूमि के लोग आ गए हैं, तब हम यह भूल जाते है कि इन लोगों को राजनीति में वोट दे कर लाने के लिए भी हम लोग ही जिम्मेदार हैं. दीनानाथ पाण्डेय जैसे लोगों के लिए, जिन पर सामूहिक हत्या का आरोप है, राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार की टिकट काट कर कांग्रेस ने सराहनीय काम किया है, परन्तु यह वही पार्टी है, जिसके शासनकाल में आंध्र प्रदेश में युवा मुसलमानों को गैरकानूनी तरीकों से गिरफ्तार किया जा रहा था और पुलिस उनपर अमानवीय अत्याचार करते हुए ऐसे अपराधों की स्वीकरोक्ति चाहती थी, जिसके लिए वो जिम्मेवार ही नहीं थे. सरकार ने तब तक इस मामले में कार्रवाई नहीं कि जब तक लोगों ने सरकार के इस तरीके के खिलाफ आक्रोश नहीं जाहिर किया.यदि पार्टियाँ समयोचित कदम लेने से कतरायेंगी और अपराधी पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव में उतारेंगी, तो ऐसे नफरत और वैमनस्यता से भरे हुए लोगों के लिए मतदान करना हमारे जैसी आम जनता के लिए संभव नहीं होगा और हमारे पास मतदान से इंकार के सिवा कोई चारा नहीं होगा.

http://raviwar.com/news/153_jamshedpur-riots-1979-kashif-ul-huda.shtml

(साभार)

शाबाश इंडिया

दुबई। जीवन वही जो दूसरे के काम आ सके। हम भारतीय तो इससे बखूबी परिचित हैं। भारतीय दर्शन की ये पंक्तियां अब सऊदी अरब के नौ लोग और उनके परिजन भी कभी नहीं भूल पाएंगे। आखिर इनकी जिंदगी एक भारतीय की बख्शी हुई जो है।
एक भारतीय परिवार ने दिमागी तौर पर मृत [ब्रेन डेड] घोषित प्रवासी परिजन के 9 अंगों को दान दे दिया। इनसे सऊदी अरब के नौ जरूरतमंद लोगों की जान बचाई जा सकी है। अंगदान करने वाले व्यक्ति या उसके परिवार की पहचान गुप्त रखी गई है। उसके अंग रियाद के अस्पताल में निकाले गए और फिर रियाद, जेद्दा और दम्मम के मरीजों को दान दिए गए। ओकाज समाचार पत्र ने यह जानकारी दी। हालांकि कौन से अंग दान में दिए गए इसका पता नहीं चल सका है।
अंग पाने वालों में जेद्दा की एक महिला भी शामिल है। उसके फेफडे का प्रत्यारोपण किया गया। महिला के शौहर अल ओयुफी ने बताया कि वह पिछले आठ साल से बीमार थी। एक माह पहले डाक्टरों ने उसका अंग प्रत्यारोपण करने का फैसला किया। तभी से हम लोग किसी दानदाता के इंतजार में थे। अल्लाह ने हमारी सुन ली। किंग फैसल स्पेशलिस्ट हास्पिटल के अंग प्रत्यारोपण के समन्वयक यासर काट्टोआ ने बताता कि पहले तो लगा कि महिला का शरीर बाहरी अंग को स्वीकार ही नहीं करेगा। लेकिन सौभाग्य से आपरेशन सफल रहा।
http://in.jagran.yahoo.com/pravasi/?page=article&articleid=1274&category=८ (साभार)

काहे की सरकार?

संबलपुर : जिले के मानेश्वर ब्लाक अंतर्गत चकुली गांव के किसानों का बुरा हाल है। सिंचाई न हो पाने की वजह से किसानों की करीब 35 एकड़ में बोयी गयी फसल बर्बाद हो गयी है। इससे निराश व हताश किसानों ने खेतों में मवेशी छोड़ दिये हैं। इससे किसानों का पेट भरे न भरे, लेकिन मवेशियों का पेट जरूर भर रहा है।
राज्य सरकार ने वर्ष 2009 को सिंचाई वर्ष के रूप में घोषित किया है। नहर के अंतिम छोर तक सिंचाई का पानी पहुंचाये जाने का पुराना वायदा भी दोहराया था, लेकिन सरकार की यह घोषणा केवल कागजों तक ही सिमटकर रह गयी है। मानेश्वर ब्लाक के चकुली गांव के खेतों की हालत देखने से सरकार के वायदे की पोल खुल जाती है। खेतों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी न मिल पाने की वजह से रबी की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है और अब इन खेतों पर मवेशियों का डेरा जम चुका है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_5434230.html (साभार)

गुजरात:रिसता जख्म


2002 के गुजरात दंगों ने इंसान और हैवान का फर्क मिटा दिया। सड़कों पर जमकर बहा बेकसूरों का खून और हजारों घर बर्बाद हो गए। लेकिन सुलगता हुआ ये सवाल आज भी जिंदा है कि क्या ये महज दो समुदायों के लोगों का टकराव था या फिर राज्य सरकार से जुड़े लोगों की साजिश का हिस्सा।
अगर उस वक्त के अहमदाबाद पुलिस के तत्कालीन मुखिया की बातों पर यकीन करें तो ये शक और भी पुख्ता हो जाता है कि दंगों पर काबू पाया जा सकता था अगर सरकार चाहती तो। सरकार से जुड़े कुछ लोगों ने न सिर्फ लोगों को भड़काया, बल्कि खुद कई जगहों पर हमलावरों का नेतृत्व भी किया। ऐसे में पुलिस के सामने अपनी आंखें बंद के अलावा और कोई चारा ही नहीं था।
क्योंकि दरिंदों की अगुवाई कर रहे थे बीजेपी और तमाम हिंदुवादी संगठनों के कुछ नेता। अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर पी सी पांडे की दंगों के दौर में लिखी 2 चिठ्ठियां इन तमाम बातों को बयां करती हैं। पांडे का खत गुजरात पुलिस की मजबूरी भी बयां करता है।
कमिश्नर पीसी पांडे ने 19 अप्रैल 2002 को पहली चिठ्ठी लिखी गुजरात के पुलिस महानिदेशक को। डीजीपी को लिखी इस चिठ्ठी से ये साफ हो जाता है सरकार के तत्कालीन मंत्री भारत बरोट कैसे भीड़ को दंगों के लिए भड़काने का काम कर रहे थे।
इस चिठ्ठी के मिलने के बाद पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया गया लेकिन उन्हें जल्द ही जमानत मिल गई। तीन दिन बाद एक बार फिर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की करतूत कमिश्नर पीसी पांडे की नजरों में आई जिसके बाद उन्होंने इस बार डीजीपी का भरोसा छोड़ सीधे 22 अप्रैल 2002 को गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक नारायण को एक पत्र लिखा।
http://khabar.josh18.com/news/12309/1 (साभार)

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

ऐसा कहा था बापू ने ??

संसद को बांझ व वेश्या अगर किसी ने कहा तो वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही थे। जिसका उल्लेख हिंद स्वराज में करते हुए बताया गया है कि संसद से कुछ पैदा नहीं होता। क्योंकि संसद का स्वरूप बहुत बिगड़ गया है।
इस बात का उललेख बुधवार को विनोबा विचार के प्रचार के लिए तीस हजार किलोमीटर पदयात्रा करने वाले रमेश भैया ने किया। वे हिमाचल के जिला कांगड़ा स्थित मैक्लोडगंज में हिंद स्वराज पुस्तक पर चिंतन शिविर में बोल रहे थे। याद रहे कि गांधी की 1909 में लिखी 'हिंद स्वराज' पुस्तक का यह शताब्दी वर्ष है।
रमेश भैया ने इस अवसर पर कहा कि बिनोवा कहते थे कि जहां चुनाव होते हैं, वहां काम नहीं होते।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local.html?pgn_current=३ (साभार)

तालमेल या चुनावी रहत? जो भी हो अच्छा है

भीषण गर्मी के उड़ीसा के ब्रजराजनगर अंचल के सभी जलस्त्रोत सूख जाने से पानी के लिए हाहाकार मचा है। कोयला खदानों के कारण नलकूप एवं कुओं का पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है।
पेयजल समस्या का समाधान ईब नदी के पानी पर था, लेकिन जब नदी की धारा भी रुक गयी और यहां केवल बालू बच गया। aprail महीने में नदी के पूरी तरह सूख जाने का प्रमुख कारण था इस नदी पर छत्तीसगढ़ में जगह जगह बने बाँध।पिछले दिनों चुनाव प्रचार करने गए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को समस्या से अवगत कराया गया था। मुख्यमंत्री आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया था। इसी के मुताबिक छत्तीसगढ़ ने नदी में पानी छोड़ दिया है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_5428288.html

काश....

मध्यप्रदेश पुलिस के एक जांबाज अफसर का नाम मरणोपरांत लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज किया गया है।
हरजीत सिंह सूदन नाम के यह जुझारू पुलिस निरीक्षक शरीर में 150 छर्रे धंसे होने के बावजूद बीस साल तक अपने फर्ज को अंजाम देते रहे।
ये छर्रे सूदन को डाकुओं से हुई भिड़ंत के दौरान लगे थे और उन्होंने जब पिछले साल दंगों में ड्यूटी के दौरान आखिरी सांस ली, तब भी ये छर्रे उनके शरीर में ही थे। कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की उनकी इस अदम्य इच्छाशक्ति को लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में राष्ट्रीय कीर्तिमान के रूप में जगह दी गई है।
सूदन के बेटे गुरविंदर सिंह यह जानकारी देते हुए भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया, 'उनकी मौत छह महीने पहले हुई। जब हमें हाल ही में लिम्का बुक आफ रिका‌र्ड्स की ओर से प्रमाण पत्र मिला तो बहुत गर्व हुआ, लेकिन मन में यह टीस भी उठी कि काश, यह कीर्तिमान जीते जी उनके नाम हो जाता।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_5429719.html

नजरिया

पाकिस्तान को बुरी तरह से अस्थिर देश बताते हुए अमेरिका के उपराष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि भारत को अपना दुश्मन न समझने के लिए इस्लामाबाद को 'सांस्कृतिक बदलाव' की जरूरत है।

बाइडेन ने ह्यूस्टन में एक बैठक में एक प्रश्न के जवाब में कहा, 'पाक बहुत अस्थिर देश है. हालांकि यह कहना बहुत कर्कश लगता है।'

बाइडेन ने कहा कि पाक को भारत को अपना दुश्मन समझने की प्रवृत्ति से मुक्त होना पड़ेगा और इसके लिए उसे एक सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पाक को समझना चाहिए कि उसका दुश्मन भारत नहीं बल्कि बैतुल्लाह महसूद, अल कायदा और तालिबान है।'
http://in.jagran.yahoo.com/news/international/politics/3_6_5430732.हटमल (साभार)

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

धर्म

लखीमपुर खीरी जनपद में आई बाढ़ में एक सिख ने अपनी पगड़ी से 8 डूबते हुए लोगों को बचा लिया पर इस खबर ने शायद ही कोई स्थान प्राप्त किया हो। आज जब धर्म के नाम पर मारामारी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा है, तो इस तरह से धार्मिक भावना की वस्तु के माध्यम से जान बचाना सुखकरी ही लगता है। क्या उन्हें कोई वीरता पुरस्कार दिया जाएगा या पुरस्कार भी राजनेताओं के लिए ही हैं।
डा० आशुतोष , drashu@gmail।com
http://khabar.ndtv.com/Leisure/YourExperienceListing.aspx?Id=४९७ पर (साभार)

सावधान, भूख फ़ैल रही है


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] और विश्व बैंक ने कहा है कि ताजा वैश्विक आर्थिक संकट अब मानव आपदा में बदलता जा रहा है। दुनिया के करोड़ों गरीब लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं।
ब्रेटन वुड्स संस्थान ने कहा कि संकट ने पांच करोड़ लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों को गरीबी की गहराई में धकेल दिया है। जो विकास लक्ष्य रखे गए थे उनमें भुखमरी, शिक्षा, एचआईवी-एड्स की रोकथाम में प्रगति, बाल मृत्यु दर में कमी और मलेरिया और अन्य बीमारियों की रोकथाम शामिल है। जोइलिक ने कहा कि 2009 के दौरान 5.5 करोड़ से 9 करोड़ और लोग गरीबी में डूब जाएंगे। इस साल भुखमरी की स्थिति में रह रहे लोगों की संख्या एक अरब से ज्यादा हो जाएगी।


स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_5425391.html (साभार)

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

नरभक्षी


एक दिल दहला देने वाली ख़बर है। एक किसान ने अपनी पोती का सर इसलिए धड से अलग कर दिया क्योकि उसे विश्वास था की उसके खून से सने बीज अच्छी उपज देंगे। यह सिर्फ़ अन्धविश्वाश की ही ख़बर नही है, ये उन हालत की भी ख़बर है जिनमे किसान जी रहे है। विकास के तमाम दावों के बीच कहीं वे खुदकुशी कर रहे है तो कही अपनों की बलि चदा रहे है। यह इस बात की भी ख़बर है की शिक्षा और वैज्ञानिक चेतना का प्रसार कहा तक हो पाया है। टीवी पर इस पर चर्चा सरगर्म है की कौन बनेगा प्रधानमंत्री को छोड़ कर देश में कही कोई चुनावी मुद्दा नही है। लोगो को आश्वाशन दिया जा रहा है की अमुक पार्टी की सरकार बनी तो विदेशो में जमा दौलत भारत लाइ जायेगी, आयकर का दायरा बढाया जाएगा। देश में ही जाम काले धन की चर्चा कही नही है।इस धन के समान वितरण के प्रयास का वायदा कही नही है, विज्ञान और तकनीक को सही मायने में खेतो तक पहुचने का वायदा कही नही है, महंगे स्कूलों की चाहर दिवारी में कैद होती जा रही उच् शिक्षा को मुक्त करवा कर ग्रामीण बच्चो तक पहुचाने का वायदा कही नही है।
क्या हम किसानो और उनके बच्चो के खून से सना अनाज नही खा रहे? क्या इस व्यवस्था में हम भी नरभक्षी नही होते जा रहे है ?
सोचें और सोचाएं
-आजभी

रविवार, 26 अप्रैल 2009

नया खतरा


मलेरिया के रूप में दुनिया के सामने अब एक नई चुनौती पैदा हो
गई है। आर्टेमिसिनिन नाम की दवा को मलेरिया की अब तक की सबसे कारगर दवा माना जाता है। पर हाल ही में मलेरिया की एक ऐसी किस्म सामने आई है जिसने इस दवा के प्रति खुद में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। यही वजह है कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएचओ) भी इसे अब ग्लोबल खतरे के तौर पर देख रहा है। मलेरिया की इस किस्म का पता पहली दफा साल 2007 में लगा था। तब इससे जुड़े मामले थाइलैंड और कंबोडिया सीमा पर स्थित मेकोंग इलाके में देखे गए थे। अब डब्लूएचओ ने भी स्वीकार लिया है कि इस स्ट्रेन ने खुद को आर्टेमिसिनिन के प्रति रेजिस्टेंट बना लिया है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पैरासाइट के कारण इंसान को सबसे घातक किस्म का मलेरिया होता है। आर्टेमिसिनिन को कॉम्बिनेशन थेरपी में इस्तेमाल किया जाता है। थाइलैंड में इसका इस्तेमाल पिछले पांच साल से हो रहा है। भारत में एसीटी का इस्तेमाल पिछले साल से ही किया जा रहा है। फिलहाल देश के 117 जिले इस ड्रग कॉम्बो का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पहले एक्सपर्ट्स का कहना रहा है कि एसीटी इंसानी खून में मौजूद मलेरिया के पैरासाइट को 24 से 36 घंटों के भीतर मार सकता है। पर ड्रग रेजिस्टेंट स्टेन के मामले में पैरासाइट को मारने में एसीटी को 120 घंटे लग जाते हैं। भारत पर इस पैरासइट के खतरे के बारे में डब्लूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया में मलेरिया अडवाइजर डॉ। क्रोंग पोंग का कहना है, चूंकि लोग हर समय एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं इसलिए मुमकिन है कि ड्रग रेजिस्टेंट पैरासाइट भी थाइलैंड और कंबोडिया से बाहर फैलने लगे। कुछ ही देर में एक संक्रमित इंसान इस पैरासाइट को भारत भी ला सकता है।


(नवभारत टाईम्स पर टी एन एन के कन्तेया सिन्हा की रिपोर्ट ) http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4448654.cms (साभार)


दोस्तों,
फैज़ अहमद फैज़ को हमने पदा है और उनकी रचनाओ को संगीत बद्ध रूप में सुना भी है, लेकिन इकबाल बानो ने फैज़ को जिस तरह गाया है वो लाजवाब है। सदमे वाली ख़बर यह है की इकबाल बानो नही रही। उन्होंने अपनी कला से इस दुनिया को मालामाल किया और हमें सब कुछ सौप कर ख़ुद हाथ झाड़ती चली गईं।
इकबाल बानो को श्रद्धांजलि
-आजभी
उनकी गायकी सुनिए http://podcast.hindyugm.com/2009/04/hum-dekhenge-tribute-to-iqbal-bano.html पर

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

ज़ज्बा रंग लाया

बेंगलूर की दो वृद्धाओं ने समाजसेवा के उद्देश्य से वृद्धाश्रम बनाने का सपना पाला और फिर पिज्जा बेचकर इसे सच भी कर दिखाया। पिज्जा दादी के नाम से मशहूर 73 वर्षीय पद्मा श्रीनिवासन और 75 वर्षीय जयलक्ष्मी श्रीनिवासन के जहन में वर्ष 2003 में एक वृद्धाश्रम बनाने का विचार आया, तो उन्होंने पिज्जा बेचकर इसका निर्माण करने का फैसला पद्मा ने इसके लिए पहले बेंगलूरु से 30 किलोमीटर दूर विजयनगर गांव में एक भूखंड खरीदा। एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से वित्ता प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्ता पद्मा ने कहा कि भूखंड खरीदने के लिए मैंने अपने पास से 10 लाख रुपये खर्च किए।वह आगे बताती है कि यह भूखंड 22,000 वर्ग फुट का है, लेकिन अब इस भूखंड पर वृद्धाश्रम का निर्माण करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। इस कार्य में 78 लाख रुपये की लागत आने वाली है। इसी दौरान मेरी बेटी सारसा वासुदेवन व मेरी मित्र जयलक्ष्मी ने इस काम हेतु पैसे जुटाने के लिए पिज्जा बनाकर बेचने का सुझाव दिया। इसके साथ ही पिज्जा का मेरा कारोबार शुरू हो गया। पिज्जा हेवेन' नामक पिज्जा की दुकान पद्मा की बेटी के गरेज में शुरू हो गई। पिज्जा की आपूर्ति बेंगलूरु के आईटी कंपनियों में शुरू की गई। जल्द ही पिज्जा यहां के युवा आईटी कर्मचारियों का पसंदीदा बन गया। पिज्जा से होने वाली आय व शुभचिंतकों के आर्थिक सहयोग से वर्ष 2008 के जून महीने में 'विश्रांति' नामक वृद्धाश्रम बनकर तैयार हो गया। 'विश्रांति' में अभी 10 वृद्ध रहते है। इस संख्या में जल्द ही बढ़ोतरी होने वाली है।

दैनिक जागरण के हवाले से चोखेर बाली पर ख़बर (साभार)

http://blog.chokherbali.in/search/label/%E0%A4%86%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

त्राहि माम


आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और विदर्भ के इलाकों से किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार आती रही हैं लेकिन अब मध्यप्रदेश में भी किसान खेती की विफलता के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। राज्य में अब तक 8 किसानों की आत्महत्या की खबर आ चुकी है. लोकसभा चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप तो हो रहे हैं लेकिन इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है कि आखिर किसान जान क्यों दे रहे हैं ?


इस वर्ष कम बारिश और सूखा की स्थिति थी. ऊपर से बिजली कटौती ने किसानों की परेशानी और बढ़ा दी है और इलाके के किसान एक गहरे संकट के दौर से गुजर रहे हैं. एक ओर तो वे बिजली कटौती के कारण फसलों में पर्याप्त पानी नहीं दे पाते, वहीं दूसरी ओर कम-ज्यादा वोल्टेज के कारण सिंचाई के मोटर जलने से वे परेशान रहते है.मध्यप्रदेश में एशियाई विकास बैंक के कर्जे से चल रहे बिजली सुधारों की स्थिति सुधरी तो नहीं है, बिगड़ ही रही है. अनाप-शनाप बिजली के बिल और कुर्की की घटनाएं सामने आ रही हैं. ग्राम नांदना में ही एक किसान की मोटर साईकिल कुर्की वाले उठाकर ले गए जबकि कर्ज किसी दूसरे किसान का था. किसानों पर ज्यादतियां बढ़ रही हैआत्महत्याएं तो कुछ किसानों ने ही की हैं लेकिन संकट में सब हैं।


बाबा मायाराम की रिपोर्ट के संपादित अंश (स्रोत रविवार.कॉम )http://raviwar.com/news/155_mp-farmers-suicide-baba-mayaram.shtml (साभार)

गनीमत है कोर्ट है

सेना में तैनात महिला अधिकारियों के साथ नौकरी में भेदभाव बरते जाने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रक्षा मंत्रालय को जमकर फटकार लगाते हुए पूछा है कि यह भेदभाव क्यों? जब छह माह पूर्व हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संबंध में गहन विचार विमर्श कर समाधान निकालने का आदेश दिया था, तो अभी तक टाल मटोल क्यों किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि भारतीय सेना जैसे अनुशासित विभाग में लिंग भेद बेहद शर्मनाक है। कोर्ट सैन्य महिला अधिकारियों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने खुद को स्थायी सर्विस कमीशन में रखने की मांग की है।

स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_5418526.html (साभार)

महिला की जगह पुरुष

सेंट्रल जेल रायपुर में सिलाई प्रशिक्षक के पद पर महिला के बजात पुヒष की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने गलत ठहराते हुए कहा कि इससे आरक्षण का आधार ही खत्म हो जाएगा। रायपुर निवासी मंजू सिंह ने वकील राकेश पांडेय के माध्यम से याचिका दायर कर बताया था कि रायपुर जेल में सिलाई प्रशिक्षक के चार पदों के लिए नवंबर २००७ में विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें दो पद अनारक्षित व दो पद आरक्षित थे। याचिका में नियुक्ति के लिए विज्ञापन में दिए गए आरक्षण की शर्तों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि जेल प्रशासन ने दो अनारक्षित पदों पर पुヒष आवेदकों की नियुक्ति कर दी है, जबकि अनारक्षित पद में एक महिला व एक पुヒष की भर्ती होनी थी। अनारक्षित महिला के पद पर पुरूष आवेदक की नियुक्ति करना नियम के विपरीत है।

(नईदुनिया से साभार) http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx

फर्क देख लो

जब तक सबके लिए एक समान शिक्षा नीति लागू नहीं की जाएगी और जब तक गरीबों-अमीरों में भारी अन्तर पैदा करने वाली यह दोहरी शिक्षा नीति लागू रहेगी, तब तक गरीबों के साथ अन्याय होता रहेगा. नेता लोग आरक्षण का विरोध या समर्थन का ढ़ोंग तो करते नजर आते हैं लेकिन कोई नेता या अफसर अपने बेटा-बेटियों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाता? क्या यह पक्षपात नहीं है?एक पहलवान और एक भूखे पेट गरीब की कुश्ती को कदापि न्याय नहीं कहा जा सकता है.
-सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटर नौएडा-भारत

(बीबीसी द्वारा छेड़ी गई एक बहस में शामिल होते हुवे)http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?sortBy=1&forumID=8570&start=15&tstart=0#paginator (साभार)

बच्चे गुड्डा-गुड्डी नही


दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बाल विवाह की वैधता का फैसला करते समय बच्ची के कल्याण को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए तथा माता-पिता को नाबालिग बच्चियों के विवाह से रोकने के लिए अधिक कड़े कानून बनाए जाने चाहिए।
बाल विवाह की वैधता के मामले को देख रही न्यायाधीश विक्रमजीत सेन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, 'यह बेहतर होगा कि कानून को अधिक कड़ा बनाया जाए ताकि माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को विवाह के लिए मजबूर न न करें।' इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रखते हुए पीठ ने कहा, 'भारतीय समाज में इस प्रकार का विवाह बच्ची के हित में नहीं है, क्योंकि यदि नाबालिग बच्ची का विवाह रद्द घोषित हो जाता है तो पुन: उसका विवाह करने में दिक्कत आएगी।' नाबालिग के विवाह की वैधता के मुद्दे पर न्यायाधीशों के बीच मतभेद होने के कारण अदालत की पूर्ण पीठ से इस मामले की सुनवाई करने को कहा गया था।
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एक ज़िन्दगी आपके हाथ में है
दोस्तों,
आज अक्षय तृतीया है । इंडिया में यह बड़ा ही शुभ दिन माना जाता है । ऐसा कहा जाता है की इस मुहूर्त में कोई दोष नही होने की वजह से शादिया भी बड़ी शुभ होती है। लेकिन दोस्तों आस्था की गर्भ से कई अंधविश्वासों ने भी जन्म ले लिया है । इस मुहूर्त पर गांवो में ( और शहरो में भी ) अक्सर मासूम बच्चो की भी शादिया कर दी जाती है। आपके इलाके में भी ऐसा रिवाज़ हो तो सावधान रहें। अपने आस पास नज़र जमाये रखें, बाल विवाह की सुचना पुलिस और प्रशासन को जरुर दे ।
और हाँ, यदि कोई ऐसा मामला आपके ध्यान में हो जिसमे इस कुप्रथा की वजह से किसी की ज़िन्दगी तबाह हुई हो तो किस्सा हमें लिख भेजे। ईमेल या टिप्पणियों के माध्यम से। इतना ख्याल रखे की किसी की मान हानि न हो ।
मासूमो की ज़िन्दगी बचाने में यह आपका बड़ा योगदान होगा।
-आजभी

एक दबोचा गया


पुरी ख़बर : http://www.dailychhattisgarh.com/ पर

ये है कर्णधार

महाराष्ट् सरकार के एक मंत्री को उनकी बीवी ने दूसरी महिला के साथ रंगे हाथों पर पकड लिया। इसके बाद न केवल उस महिला की खबर ली, बल्कि मंत्री-पति की भी जमकर धुनाई कर दी। यह मुद्दा महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में चुनाव जितना ही गर्म बना हुआ है। घटना दक्षिणी मुंबई के एक विधायक हॉस्टल में हुई। मंत्री की पत्नी हॉस्टल पहुंची तो वह महिला मेहमान के साथ पहली मंजिल के एक कमरे में मिले। पति को दूसरी महिला के साथ देख मंत्री की पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और उन्होंने उस महिला की तो धुनाई की ही, अपने पति को भी नहीं बख्शा। हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है। बताया जाता है कि मंत्री विदर्भ क्षेत्र से हैं और सरकार में उन्हें हाल ही शामिल किया गया है। महाराष्ट् सरकार के एक मंत्री को उनकी बीवी ने दूसरी महिला के साथ रंगे हाथों पर पकड लिया। इसके बाद न केवल उस महिला की खबर ली, बल्कि मंत्री-पति की भी जमकर धुनाई कर दी। यह मुद्दा महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में चुनाव जितना ही गर्म बना हुआ है। घटना दक्षिणी मुंबई के एक विधायक हॉस्टल में हुई। मंत्री की पत्नी हॉस्टल पहुंची तो वह महिला मेहमान के साथ पहली मंजिल के एक कमरे में मिले। पति को दूसरी महिला के साथ देख मंत्री की पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और उन्होंने उस महिला की तो धुनाई की ही, अपने पति को भी नहीं बख्शा। हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है। बताया जाता है कि मंत्री विदर्भ क्षेत्र से हैं और अशोक च±वाण सरकार में उन्हें हाल ही शामिल किया गया है।
पुरी ख़बर देखें http://www.khaskhabar.com/showstory.php?storyid=1761 (साभार)

दूसरा पहलु

जन-सुरक्षा कानून के तहत बाईस महिनो से जेल मे बंद डा विनायक सेन की रिहाई की मांग के लिये राजधानी रायपुर मे हर सोमवार को प्रदर्शन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।इसी के तहत कल अरुंधति राय यहां आई और सरकार को कोस कर वापस लौट गई।उन्होने जेल मे बंद करने वाली सरकार पर तो जमकर आरोप लगाये मगर डा सेन को अदालत ने जमानत पर रिहा करने की अर्जी को नामंज़ूर क्यों की ,इस पर कुछ नही कहा। डा सेन की रिहाई की मांग करने वाले ये तो कहते है कि सरकार के पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नही है,फ़िर उन्हे जमानत क्यो नही मिल पा रही इस बात का उनके पास कोई जवाब नही है।मानवाधिकारो की वकालत करने वालो के पास शायद इस सवाल का भी जवाब नही होगा कि अदालत के फ़ैसले का सम्मान करने की बजाये उसके खिलाफ़ जन आंदोलन खड़ा करना या धरना-प्रदर्शन और रैली करना क्या अदालत के काम-काज को प्रभावित करने की कोशिश नही है?क्या ये अदालत की अवमानना नही है?डा सेन को रिहा कराने के लिये अदालत छोड़ आंदोलन का सहारा लेना कितना सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?क्या अदालत के फ़ैसले जो पक्ष मे आते हैं,या सरकारों,खास कर गुजरात सरकार के खिलाफ़ होते है,सिर्फ़ वे सही है?क्या अदालत के फ़ैसलो का सम्मान नही किया जाना चाहिये?

-अनिल पुसदकर अपने ब्लाग अनिल पुसदकर.कॉम में

स्रोत http://anilpusadkar.blogspot.com/

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मानवाधिकार कार्यकर्ताओ ने डा बिनायक सेन की गिरफ्तारी को लेकर कई सवाल खड़े किए है । लेकिन आम लोगो के जेहन में भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के लिए सवाल है । रायपुर के पत्रकार अनिल पुसदकर ने अरुंधती राय प्रकरण के बहाने ऐसे ही कुछ सवाल उछाले है ।

-आजभी

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कहाँ जा रहे हो

दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि आग से खेलने वाली वृत्तियॉं केवल जलाकर खाक ही करती हैं। किसी खास तरह के मुकम्मल समाधान का संदेश ऐसे लोगों के पास नहीं होता। हाल ही में, झारखंड के लातेहार नामक स्थान पर बीएसएफ की टुकड़ी को निशाना बनाने के लिए, केवल नौ साल के एक बच्चे का इस्तेमाल किया गया। इतना ही पर्याप्त नहीं था, बल्कि इन्हें नक्सली सुरक्षा बलों के आने-जाने और उनकी गतिविधियों की टोह लेने के लिए, इन बच्चों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। ऐसे हालात में, हम इन्हें किस दिशा में ले जाकर जीवन के उन ज्वलंत प्रश्नों के निवारण का सामर्थ्य सौंपेंगे,कुछ कहा नहीं जा सकता? जिस उम्र में शिक्षा और जीवन को विकसित करने की कला सिखाई जाती है, उस उम्र में हम उन्हें हथियारों और गोला-बारूदों से ढॅंक देने का प्रयास करेंगे तो आखिर उनके भविष्य का दारोमदार कहॉं जाकर दम लेगा? झारखंड की इन्हीं स्थितियों से कहीं और आगे छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इन बच्चों का एक व्यापक समूह "बाल संघम" के रूप में जाना जाता है।

नई दुनिया में सम्पादकीय दिनांक २४ अप्रैल ०९

http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx (साभार)

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दोस्तों

हालातकितने खतरनाक हो चले है। नई दुनिया ने ठीक ही लिखा है। सत्ता के लिए ये कैसा संघर्ष है, विचारधाराओ की ये कैसी लडाई है, मासूमो की आहूति देकर कौन सा और कैसा शोषण मुक्त समाज बन पायेगा? जिन बचचों को अपने बचपन की भी ख़बर नही उनका इस्तेमाल लडाई में हथियारों की तरह करना क्या उनका शोषण करना नही है ?

-आज भी

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देर-सबेर

नियति ने किसी व्यक्ति के लिए क्या तय कर रखा है इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। इस बात का बांग्ला लेखक शंकर से बेहतर उदाहरण शायद दूसरा नहीं है। लगभग 47 वर्ष पहले लिखा गया उनका बहुचर्चित उपन्यास चौरंगी इन दिनों लंदन बुक फेयर में धूम मचा रहा है। सन 1962 में शंकर ने इस उपन्यास का कथानक अपने गृह नगर कोलकाता में स्थित एक होटल पर रचा था और इस उपन्यास ने धूम मचा दी थी। इसकी हजारों हजार प्रतियां भारत और बांग्लादेश में बिकीं। दर्जनों भाषाओं में अनुदित इस उपन्यास पर एक फिल्म का निर्माण भी हुआ जिसे बांग्ला की क्लासिक फिल्मों में शुमार किया जाता है। शंकर का असली नाम मणिशंकर मुखर्जी है। लंदन में चल रहे पुस्तक मेले में उनके नाम की जबरदस्त चर्चा है। जहां एक तरफ विद्वान उनके उपन्यास की चर्चा कर रहे हैं, वहीं समीक्षक उसकी तारीफ कर रहे हैं। पुस्तकों को खरीदने के लिए पाठकों की भीड उमड रही है। इतने वर्षो बाद मिली सराहना को लेकर 75 वर्षीय शंकर निश्चित रूप से बेहद प्रसन्न हैं क्योंकि भारत में अपनी इन तमाम सफलताओं के बावजूद वह अभी तक पश्चिमी मुल्कों में लगभग गुमनाम थे। शंकर ने कहा कि पिछले 47 वर्षो तक मैं बंगाली स्वाभिमान में ही जी रहा था। मेरा कहना था, वे मेरे पास आएं, मैं उनके यहां नहीं जाने वाला।
(ख़बर स्रोत http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/?page=slideshow&articleid=2103&category=7 --------------------------------
दोस्तों,
आज भी ऐसे लोग है जो नाम या दाम के लिए स्वाभिमान से समझौता नही करते। जो समझते है की कागजी फूलो को ही बनावटी रंगों और खुशबू की जरुरत होती है। कुदरती तो यूँ ही महका करते है।
आखिरकार शंकर दा का ज़ज्बा ही जीता।
इस ज़ज्बे को सलाम ।
-आज भी

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

काम की बात

वन तुलसा नामक वनस्पति बेकार जमीन मे उगती है खरपतवार के रुप में। छत्तीसगढ के किसानो ने देखा कि जहाँ यह वनस्पति उगती है वहाँ गाजर घास नही उगती है। यदि उग भी जाये तो पौधा जल्दी मर जाता है। माँ प्रकृति के इस प्रयोग से अभिभूत होकर वे अपने खेतों के आस-पास इस वनस्पति की सहायता से गाजर घास के फैलाव पर अंकुश लगाये हुये हैं। अरहर की जगह छत को ठण्डा रखने के लिये इसके प्रयोग का सुझाव किसानो ने ही दिया। उनका सुझाव था कि छत मे इसकी मोटी परतऊपर से काली मिट्टी की एक परत लगा देने से घर ठंडा रहेगा। एक पशु पालक ने एस्बेस्टस की छत के नीचे रखी गयी गायों को गर्मी से बचाने के लिये कूलर की जगह इसी वनस्पति का प्रयोग किया ।
-पंकज अवधिया
हलचल.ज्ञानदत्त.कॉम में
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बहूत सी छोटी-छोटी बाते है जो ज़िन्दगी में बड़े काम की होती है, लेकिन लोग बड़ी-बड़ी बिना matalab की बातो में उलझे रहते है । आपकी नज़र भी पंकज जी की तरह किसी खास आम चीज़ पर गई हो तो लिख भेजें ।
-आज भी
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तो बम कैसा होगा?

यह ख़बर छत्तीसगढ़ के रायपुर से प्रकाशित शाम के एक अख़बार छत्तीसगढ़ ने प्रकाशित की है। जरा सोचें और सोचाएं

कैसी दुनिया कैसे लोग



18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबाई के अंदाज़ में रहती हैं। यानि अपनी पोती की उम्र की लड़की को भी खुशवंत सिंह भौंडी नज़र से देखते हैं। और तो और वो कृष्ण-भक्त मीराबाई को भी अपनी घिनौनी कामुकता के दायरे में ले आते हैं।


अतुल अग्रवाल


विस्फोट.कॉम में

कोशिश एक आश


मौसम पर एक महाप्रयोग होने जा रहा है। अगर अनुसंधान सफल रहा तो बारिश व सूखे के अलावा मौसम के दूसरे पहलुओं पर बीस से तीस दिन तक की दिनवार भविष्यवाणी संभव हो सकेगी। इसे डवलपमेंट एंड एप्लीकेशन आफ एक्सटेंडिड रेंज फारकास्ट सिस्टम फार क्लाइमेट रिस्क मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर का नाम दिया गया है।
इस बाबत विशेषज्ञों की एक बैठक 27 अप्रैल को हैदराबाद में होगी। हिमाचल के जिला कांगड़ा स्थित चौधरी सरवण कुमार कृषि विवि पालमपुर इसमें रिसर्च पार्टनर होगा।
इसमें डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर एंड कोआपरेशन, आईसीएआर,आईआईटी दिल्ली, नेशनल सेंटर फार मीडियम रेंज वेदर फारकास्टिंग व स्पेस एप्लीकेशंज सेंटर के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसके अलावा आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कई देशों के वैज्ञानिक भी इसमें शामिल होंगे

(जागरन डाट याहू डाट कॉम पर ख़बर)

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

जय हो

छठे वेतन आयोग में सरकारी सेवा में कार्यरत चपरासी को 15 हजार रुपये वेतन का वायदा किया गया है। एक राष्ट्र के रूप में क्या हम यह नहीं सोच सकते कि किसान की कम से कम इतनी आय तो हो जितना कि एक चपरासी वेतन पाता है? जब एक किसान परिवार की मासिक आय 2115 रुपये है तो नौकरशाहों और प्रौद्योगिकी के धुरंधरों को शर्म क्यों नहीं आनी चाहिए? यदि वे शर्मिंदा नहीं होते तो हमें उन्हें अपनी गलती स्वीकारने को बाध्य करना चाहिए.
देविंदर शर्मा का विश्लेषण
रविवार डट कॉम में
( आप की टिप्पणिया आमंत्रित है)

जूता बनाम इंडिया

7 अप्रेल 09 को गृहमंत्री पी चिदंबरं की प्रेस कान्फ़्रेंस देख रहा थी, एकाएक एक जूता उछला और उनके दाहिने कान के पास से होता हुआ निकल गया। यह इतना अचानक हुआ कि शायद ही वहां बैठे पत्रकारों को भी समझ में देर लगी होगी। लेकिन चिदंबरंम काफ़ी चौकन्ने थे। वे बचे भी और बेसाख्ता उनके मुहं से निकाला। इन्हें बाहर ले जाइए मैं इऩहें माफ़ करता हूं। आप यानी रानीतिक दल शायद यह सोचें कि चुनाव के चलते उऩ्होंने यह घोषणा की होगी। लेकिन उनकी वह तात्कालिक प्रतिक्रिया थी। जब ले जाया जारहा था तब उन्होंने दो बार अंग्रेज़ी में कहा आराम से ले जाएं। यानी ज़बरस्ती न करें। यहां एक सवाल तो यह उठता है कि वहां इंटेलिजेंस का पूरा अमला होगा। उनकी नज़र एक आदमी पर रहती है। पत्रकार अगली पंक्ति में बैठा था। जूता खोलने और फेंकने मे 5 नहीं तो 3 या 4मिनट तो लगे होंगे। अगर वे चौकस होते तो जूता फेंकने से पहले ही पकड़ सकते थे कम से कम घेर तो सकते ही थे। जब गृहमंत्री इतने असुरक्षित हैं तो आम आदमी तो किस्मत से ही जी रहा है।
-गिरिराज किशोर
अपने ब्लाग फिलहाल में

अनुभूति



हरे भरे मन की थाह
उस क्षण,न जाने


क्यों ऐसी अनुभूति


हुईकि मेरा


मनएक विस्तृत भू-खण्ड


भान ही कहां थाकि


इस घास से भरे भू-खण्ड पर


कब से हजारों पक्षीं


जाने कैसे बीज चुग रहे


तुम न आते और


in अजाने- अदेखेपक्षियों का झुण्ड


शोर मचाकरउड न गया होतातो


,मैं अपने हरे भरे मन कीथाह कैसे पाती?
मनीषा कुलश्रेष्ठ


( हिन्दी नेस्ट डाट काम में)

rajniti


कट्टरपंथी नेता और पूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान के नेतृत्व वाले अकाली दल (अमृतसर) ने पत्रकार जरनैल सिंह को लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी का टिकट देने का प्रस्ताव दिया है।
मान ने सिंह को अमृतसर सीट से टिकट देने का प्रस्ताव दिया है। यहां से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को मैदान में उतारा है।
मान ने कहा, “जरनैल ने बहादुरी का एक बड़ा काम किया है। सिखों के साथ हुए अन्याय को रेखांकित करने के लिए सिंह ने जो काम किया, उस पर हम सभी सिखों को गर्व है।”


(इस ख़बर पर आपकी राय लिखे)

हम बोलेंगे तो बोलेंगे की बोलते है


वरुण को दोष देने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस तरह के बयान तो कई नेता देते रहे है. पर वरुण का बयान चुनाव के समय आया है. 2005 मे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी कहा था और तब वहाँ राजनाथ सिंह भी थे लेकिन लोगों को सज़ा अपने क़द के अनुसार मिलती है.वरुण ने जो कहा वह ग़लत है ही पर उससे भी ग़लत अब उस पर होने वाली राजनीत में होगा. कभी कविता लिखने वाले ये वरुण गांधी वह नहीं हैं जो भारत को एकजुट कर सकें.
DIPAK D। CHUDASAMA HYDERABAD


(बीबीसी में)


( photo : akhilesh bharos flickr ke chhattisgarh teg me)

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

देखो ना


दोस्तों



देखो न



कैसी खुबसूरत खामोशी है



जो पसर रही है



मेरे-तुम्हारे भीतर







के दुनिया दिन-ब-दीन



कितनी खुबसूरत होती जा रही है





पोस्टर पर



मुस्कुरा रहा है मंगलू



नैनो में नैनो चमक रही है



रामू की बस्ती में



एक्वागार्ड छान रहा है प्यास



रिक्शा khhich kar thhaka chainu



brislari se bujhata hai प्यास



बिसेसर की जेब में है टाटा-अम्बानी



हर रोज देस फोन लगा



जोरू को बताता है



दिहाडी के किस्से



गावो के गावो



किंगफिशर पैर मुग्ध है



पुनीत के कुंवे से



पानी नही



कोका-कोला निकलता है



आधी आबादी पड़ती है डीपीएस जैसे स्कूलों में



आधी को



मोबाईल पर abhisek पदाता है





fatichar लोग



chun रहे है ख़ुद के लिए



karodpati sansad-widhayak



सितारे, galiyon-chaurahon पर



भीख mang रहे है



बड़े babu का बेटा



hiro-honda par sawar है



bitiya skuti par farrte bhar रही है



bhikhu chaprasi का बेटा



रोज fast food mangta है



बाप की जेब जो लाल है



कैसे खुबसूरत nazare है दोस्तों





udhar bam



इधर हम



udhar warun lalkar रहे है



इधर jagdish पर wichar रहे है



sanju बाबा की jhhappi-pappi



lalu का thenga



karunauanidhi की yari



bastar में janta bechari



polis naxali दोनों maar रहे है





mulayam के sath kalyan है



adwani-manmohan का bayan है







देखो न doston



कैसी खुबसूरत खामोशी है



जो पसर रही है



मेरे-तुम्हारे भीतर



























सोमवार, 20 अप्रैल 2009