शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

कहाँ जा रहे हो

दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि आग से खेलने वाली वृत्तियॉं केवल जलाकर खाक ही करती हैं। किसी खास तरह के मुकम्मल समाधान का संदेश ऐसे लोगों के पास नहीं होता। हाल ही में, झारखंड के लातेहार नामक स्थान पर बीएसएफ की टुकड़ी को निशाना बनाने के लिए, केवल नौ साल के एक बच्चे का इस्तेमाल किया गया। इतना ही पर्याप्त नहीं था, बल्कि इन्हें नक्सली सुरक्षा बलों के आने-जाने और उनकी गतिविधियों की टोह लेने के लिए, इन बच्चों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। ऐसे हालात में, हम इन्हें किस दिशा में ले जाकर जीवन के उन ज्वलंत प्रश्नों के निवारण का सामर्थ्य सौंपेंगे,कुछ कहा नहीं जा सकता? जिस उम्र में शिक्षा और जीवन को विकसित करने की कला सिखाई जाती है, उस उम्र में हम उन्हें हथियारों और गोला-बारूदों से ढॅंक देने का प्रयास करेंगे तो आखिर उनके भविष्य का दारोमदार कहॉं जाकर दम लेगा? झारखंड की इन्हीं स्थितियों से कहीं और आगे छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इन बच्चों का एक व्यापक समूह "बाल संघम" के रूप में जाना जाता है।

नई दुनिया में सम्पादकीय दिनांक २४ अप्रैल ०९

http://epaper.naidunia.com/epapermain.aspx (साभार)

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दोस्तों

हालातकितने खतरनाक हो चले है। नई दुनिया ने ठीक ही लिखा है। सत्ता के लिए ये कैसा संघर्ष है, विचारधाराओ की ये कैसी लडाई है, मासूमो की आहूति देकर कौन सा और कैसा शोषण मुक्त समाज बन पायेगा? जिन बचचों को अपने बचपन की भी ख़बर नही उनका इस्तेमाल लडाई में हथियारों की तरह करना क्या उनका शोषण करना नही है ?

-आज भी

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