रविवार, 26 अप्रैल 2009

नया खतरा


मलेरिया के रूप में दुनिया के सामने अब एक नई चुनौती पैदा हो
गई है। आर्टेमिसिनिन नाम की दवा को मलेरिया की अब तक की सबसे कारगर दवा माना जाता है। पर हाल ही में मलेरिया की एक ऐसी किस्म सामने आई है जिसने इस दवा के प्रति खुद में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। यही वजह है कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएचओ) भी इसे अब ग्लोबल खतरे के तौर पर देख रहा है। मलेरिया की इस किस्म का पता पहली दफा साल 2007 में लगा था। तब इससे जुड़े मामले थाइलैंड और कंबोडिया सीमा पर स्थित मेकोंग इलाके में देखे गए थे। अब डब्लूएचओ ने भी स्वीकार लिया है कि इस स्ट्रेन ने खुद को आर्टेमिसिनिन के प्रति रेजिस्टेंट बना लिया है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पैरासाइट के कारण इंसान को सबसे घातक किस्म का मलेरिया होता है। आर्टेमिसिनिन को कॉम्बिनेशन थेरपी में इस्तेमाल किया जाता है। थाइलैंड में इसका इस्तेमाल पिछले पांच साल से हो रहा है। भारत में एसीटी का इस्तेमाल पिछले साल से ही किया जा रहा है। फिलहाल देश के 117 जिले इस ड्रग कॉम्बो का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पहले एक्सपर्ट्स का कहना रहा है कि एसीटी इंसानी खून में मौजूद मलेरिया के पैरासाइट को 24 से 36 घंटों के भीतर मार सकता है। पर ड्रग रेजिस्टेंट स्टेन के मामले में पैरासाइट को मारने में एसीटी को 120 घंटे लग जाते हैं। भारत पर इस पैरासइट के खतरे के बारे में डब्लूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया में मलेरिया अडवाइजर डॉ। क्रोंग पोंग का कहना है, चूंकि लोग हर समय एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं इसलिए मुमकिन है कि ड्रग रेजिस्टेंट पैरासाइट भी थाइलैंड और कंबोडिया से बाहर फैलने लगे। कुछ ही देर में एक संक्रमित इंसान इस पैरासाइट को भारत भी ला सकता है।


(नवभारत टाईम्स पर टी एन एन के कन्तेया सिन्हा की रिपोर्ट ) http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4448654.cms (साभार)

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