सोमवार, 4 मई 2009

डिजिटल रेप पर सज़ा तय हो

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त कानून के अभाव में महिलाओं का विभिन्न प्रकार से यौन उत्पीड़न करने वाले मुजरिमों को कम सजा देने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह विधि आयोग की रिपोर्ट पर विचार करने के साथ ही दुष्कर्म की परिभाषा का दायरा बढ़ाते हुए उसमें ‘डिजिटल रेप’ को भी जोड़े। किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा कंप्यूटर से छेड़छाड़ करने को ‘डिजिटल रेप’ माना जाता है।
जस्टिस एस मुरलीधर ने इस शब्द का इस्तेमाल उंगलियों से स्त्री की लज्जा भंग करने के संदर्भ में किया है। इस जुर्म को बॉटम पिंचिंग जैसा मानते हुए संबंधित मामले का निपटारा आईपीसी के सेक्शन 354 के तहत किया जाता है। चार पुत्रियों के पिता व मुजरिम तारा दत्त (54) से जुड़े इस मामले ने पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख केपीएस गिल के मामले की यादें ताजा कर दी हैं।
(दैनिक भास्कर से साभार)

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