गुरुवार, 7 मई 2009

अब इसे आप क्या कहेंगे

परीक्षा में नकलची छात्रों को पकड़ने वाली यूनिवर्सिटी के सर्वेसर्वा खुद नकल के आरोपों से घिरते नजर आ रहे हैं। देवी अहिल्या विवि के प्रभारी कुलपति प्रो। राजकमल पर अन्य वैज्ञानिकों की रिसर्च को खुद के नाम से पेश करने का मामला चल रहा है। प्रभारी कुलपति द्वारा नकल करने के मामले की शिकायत राजभवन से लेकर यूजीसी तक भी पहुँची है। यूनिवर्सिटी ने पाँच साल पुराने मामले पर अंतिम निर्णय नहीं दिया है। इधर नियमित कुलपति बनने की दौड़ में शामिल प्रो. राजकमल ने इस मामले को चरित्र हनन की कोशिश करार दिया है। प्रभारी कुलपति द्वारा की गई नकल का जिन्ना बरसों बाद फिर बोतल से निकल आया है। हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत यूनिवर्सिटी से इस मामले की जानकारी माँगी गई है। इतना ही नहीं प्रभारी कुलपति के खिलाफ एक बार फिर राजभवन में शिकायत कर दी गई है। सूत्रों के मुताबिक राजभवन ने भी यूनिवर्सिटी से स्पष्टीकरण माँग लिया है। नकल के मामले में की गई जाँच और कार्रवाई का ब्योरा माँगा गया है। हूबहू नकल जनवरी-२००४ में प्रो. राजकमल ने कम्प्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) के जरनल में प्रकाशित करने के लिए एक रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था। डॉ. राजकमल ने "रियल टाइम स्केलेबल प्रॉयोरिटी क्यू फॉर हाई स्पीड पैकेट स्वीचेस" शीर्षक वाले इस पेपर को कर्नाटक की कृष्णाकोविल यूनिवर्सिटी के एमई के छात्र सरदार इरफानउल्लाह के साथ मिलकर लिखा था। उस समय प्रो. राजकमल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस में नियुक्त थे और दो साल की छुट्टी लेकर कर्नाटक की यूनिवर्सिटी में अध्यापन कर रहे थे। प्रकाशन के लिए पेपर देने के बाद सीएसआई की ओर से इसे लौटा दिया गया था। सीएसआई के रैफरी की ओर से प्रो. राजकमल के पेपर के अधिकांश हिस्से को वर्ष-२००० में आईईईई के जरनल ट्रांसजेक्शन ऑन कम्प्यूटर्स के अंक ४९ में छपे एक शोध की नकल करार दिया था। इसको तीन विदेशी शोधार्थियों ने अंजाम दिया था। बाद में सीएसआई ने रैफरी की टिप्पणी और नकल किए पेपर की सूचना स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस को कार्रवाई के लिए भेज दी थी। यूजीसी ने भी माँगा था जवाब२००४ में स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस के हेड रहे डॉ. एपी खुराना ने नकल की शिकायत राजभवन और यूजीसी तक पहुँचाई थी। इसके बाद यूजीसी द्वारा ३१ मार्च-२००७ को पत्र लिखकर यूनिवर्सिटी से इस पूरे मामले पर आगे की कार्रवाई करने के लिए कुलपति से टिप्पणी माँगी थी। हालाँकि उसके बाद यूनिवर्सिटी की ओर से यूजीसी को कोई कमेंट नहीं भेजा गया। डॉ. खुराना के अनुसार डिपार्टमेंट हेड होने के नाते सीएसआई जरनल के एडिटर ने उन्हें प्लेगिरिज्म (साहित्यिक चोरी) की शिकायत सौंपी थी। उन्होंने इसे यूनिवर्सिटी में फाइल कर दिया था। इसके बाद क्या कार्रवाई हुई यह उन्हें नहीं पता।

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