शुक्रवार, 8 मई 2009

इस अमिताभ को क्या हो गया

रामू की बात हम नही करते, रामू तो रामू है। मुंबई में जब हमला हुआ तब ये जनाब होटल ताज में पर्यटन कर रहे थे। इसने तो देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी की अपेक्षा करना ही फिजूल है। लेकिन इस अमिताभ को क्या हो गया, जो रामू की ताल में ताल मिलते नज़र आ रहे है।
फ़िल्म रन कहे विवादास्पद गाना सेंसर कर दिया गया है, लेकिन बात यही पैर ख़त्म नही हो जाती है। यह तो इस बहस की शुरुवात है की जनभावानाओ का व्यवसायीकरण किस हद तक खतरनाक हो चला है। हरिवंश राय बच्चन और तेज़ी बच्चन के सुपुत्र अमिताभ बच्चन से अकल की उम्मीद तो की ही जा सकती है की वे राष्ट्र के मन-अपमान को समझ सकें, अमर सिह जैसे समाजवादियों की सोहबत में उन्होंने फ़िर क्या सीखा ? अमिताभ इस देश के महानायक कहे जाते है और उनके किए का अनुसरण करने वाले भरी तादाद में मौजूद है। लोग उनकी इज्ज़त करते है, इसके बावजूद की परदे से बहार उन्होंने सार्वजनिक हित का कोई बड़ा खूंटा कभी उखाडा हो ऐसा नज़र तो नही आता। परदे पर उन्हें बुरइयो से लड़ता देख कर मासूम देश ने नायक मान लिया।
जब अमिताभ जन गन मन को तोड़ मरोड़ कर गाते नज़र आते है तो यह मान लेना मुर्खता होगी की उन्हें अपनी करतूत का अंदाजा नही होगा। यह बुजुर्ग नायक आम आदमी से कही ज़्यादा अक्लमंद है और कानून कायदे जनता समझता है। बस यही पर अमिताभ कहे अपराध ज़्यादा गंभीर हो जाता है।
रामू तो सयाना है ही, यह तर्क कितना बचकाना है की जन गन मन के नए रूप में देश के वर्तमान हालत को पेश किया गया है। जिस लाइन को गाने से देश की छाती फूलती हो, जिसे गाने से मज़बूत राष्ट्र का अहसास होता हो, उसमे नकारात्मक ध्वनियाँ भरने कहे हक़ रामू या अमिताभ को किसने दिया? रामू अपने गीत में देश के हालत जितने बुरे बताना चाहते है, क्या सचमुच उतने बुरे हालत है? पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा क्या सचमुच में आपस में लड़ मर रहे है? यदि लोगो में एक-जुटना नही होती तो पंजाब कब का अलग हो गया होता, कश्मीर में साजिशें कामयाब हो चुकी होती, मराष्ट्र से अमिताभ बेदखल कर दिए गए होते, गुजरात मुस्लिम विहीन हो गया होता।
असल में किसी मुद्दे को सनसनीखेज़ बना कर कैसे पैसे कमाए जाते है ये बात रामू जैसे लोग खूब जानते है। अमिताभ जैसे लोग जब उनकी सोहबत में नज़र आते है तो ज़्यादा दुःख होता है।
अमिताभ ये देश आपकी इज्ज़त करता है, आप इसे बनाये रखें
-आजभी

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