शनिवार, 2 मई 2009

भगवन भरोसे देहात

अलीगढ़। डायरिया के मरीजों की भरमार के बावजूद देहात के कई अस्पतालों में तैनाती के बावजूद डॉक्टर नहीं जा रहे। 'साहब' की गैरहाजिरी से दूसरे कर्मचारी भी मनमर्जी पर उतारू हैं। एसीएमओ ने गुरुवार को कई अस्पतालों का निरीक्षण किया तो पोल खुली। एक दिन में चार डॉक्टर व आठ कर्मचारी ड्यूटी से नदारद मिले।
एसीएमओ डा। डीके पटेरिया ने गुरुवार को निरीक्षण किया। सुबह 8:40 बजे गभाना स्थित स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे और कई 'ड्यूटीचोरों' को पकड़ा। न तो यहां तैनात डॉ. शाइस्ता कबीर ही मिलीं और न ही उनके तमाम कारखास ही। रिकार्ड देखने से खुलासा हुआ कि डॉ. कबीर तो बुधवार को भी नहीं आई थीं। वार्ड ब्वाय मदनपाल, वार्ड आया विमलेश, डेंटल असिस्टेंट ओबेदुल्ला खान व बीएसडब्ल्यू राधेश्याम भी नहीं पहुंचे थे। एसीएमओ ने सभी को गैरहाजिर किया और पहुंच गए चंडौस। यहां साढ़े नौ बजे तक डॉ. बृजमोहन शर्मा नहीं पहुंचे थे। एचवी कुसुम कुमारी भी ड्यूटी पर नहीं थीं। पिसावा में पौने दस से साढ़े दस बजे तक एसीएमओ रुके। यहां के डॉ. सतेंद्र कुमार नहीं मिले। सिर्फ स्वीपर व वार्ड ब्वाय ही थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_5437276_1.html (साभार)

दोस्तों,

सतही तौर पर तो यह छोटी सी ख़बर है, लेकिन यह पूरे देश कहे हल बयां करती है। ख़बर यह नही है की सरकारी कर्मचारी नदारत है, ख़बर तो यह है किसी ने तो कहीं छापा मारने की तकलीफ की। ऐसे छापो की जरुरत देश के हर गानों-शहर में हर रोज है। निजीकरण की आंधी ऐसी चली की मूलभूत सेवाएँ भी ले उडी।बात चाहे शिक्षा की हो या चिकित्सा की, उद्योगपति और व्यापारी दोनों हाथो से दौलत दुह रहे है। सरकारी सेवाएँ नाम भर की रह गई है। जिसकी जेब में पैसा ना हो वो ना तो सही शिक्षा हांसिल कर पा रहा है और ना ही इलाज़। देखा जा रहा है की सरकारी नौकरों ने भी अपनी-अपनी दुकाने तान ली है। यह भी पाया जा रहा है की सार्वजनिक सेवाओ को नेस्तनाबूद करने निजी तंत्र साजिशें रच रहा है।यह प्रवृत्ति अब निचले इस्टर तक पसर चुकी है। संचार क्षेत्र में बीएसएनएल ने अपना वर्चस्व लंबे समय तक कायम रखा, अच्छे नेटवर्क और सस्ती काल की वज़ह से उसकी मोबाईल सेवा तेजी से लोकप्रिय हुई थी, लेकिन शीघ्र ही यह अलोकप्रिय भी हो गई। ऐसा कहा जाता है की निजी कंपनियों से अफसरों की मिलीभगत का यह परिणाम था। अभी एक वाक्य रायपुर रेलवे स्टेशन पर पेश आया। प्लेटफार्म के सभी सार्वजनिक नल इसलिए बंद कर दिए गए थे ताकि महंगे मिनिरल वाटर की खपत बड़ाई जा सके।

इन छोटी बड़ी साजिशों से सत्ताधीश बेखबर कैसे हो सकते है? ये इतने तो मासूम नही है। कितनी ही निजी कंपनियों में इनकी भागीदारी है, कितनी को इनका आर्शीवाद प्राप्त है, कितनी ही इनकी ख़ुद की है। इन व्यापारी राजनीती बाजो के हथकंडो की शिकार जनता हो रही है। ......देश कहाँ जा रहा है?

-आजभी

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