गुरुवार, 7 मई 2009

जजिया क्यो ?

नई दिल्ली। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने पाकिस्तान के कुछ तालिबानी नियंत्रण वाले इलाकों में सिखों पर जजि़या [कर] थोपने को अन्यायपूर्ण और इस्लाम तथा मानवता के विरुद्ध बताया और कहा कि दुनिया के किसी भी इस्लामी देश में जजि़या व्यवस्था नहीं है।
जामिया के लगभग 20 विभागों के शिक्षकों ने संयुक्त बयान में कहा, 'यह इस्लाम के नाम पर किए जाने वाला चिंताजनक और दुखद गैर-इस्लामी कार्य है..और पाकिस्तान के धर्मगुरुओं तथा बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे अपनी सरकार पर इस अन्यायपूर्ण क्रियाकलापों को रोकने का दबाव बनाएं।'
विश्वविद्यालय के इस्लमी अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अख्तरूल वासे ने कहा, 'जजि़या की धार्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह है कि यह इस्लामी हुकूमत में उन लोगों पर लगाया जाता था जिन पर युद्ध में विजय प्राप्त की हो। मगर जजि़या देने वालों को कोई अन्य कर नहीं देना होता था। लेकिन सरकारी नौकरी स्वीकार कर लेने पर उन्हें जजि़या भी नहीं देना होता था।' उन्होंने कहा, वर्तमान शासन व्यवस्था में सामान्य नागरिकों की तरह अल्पसंख्यक भी सभी प्रकार के टैक्स अदा करते हैं। राज्य के सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी रहती है। ऐसी राज्य व्यवस्था में अल्पसंख्यकों पर जजि़या लगाने का कोई औचित्य नहीं है।
बयान में कहा गया कि विश्व विख्यात दारुल उलूम देवबंद के विद्वानों सहित लगभग सभी मुस्लिम विद्वान बीसवीं सदी के आरंभ में ही यह व्यवस्था दे चुके हैं कि अब पूरी दुनिया 'दारुल अहद' यानी एक संधि या समझौते के अधीन है। यही कारण है कि अब किसी भी इस्लामी देश में जजि़या के कानून अमल नहीं किए जाते हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/terrorism/5_19_5450341.html

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें