शनिवार, 9 मई 2009

ऐसे प्रशासन को चाटेंगे?

फरीदाबाद, [अनिल बेताब]। तपती दोपहरी में बलजीत पड़ोस के दरवाजे पर दस्तक देता है-दीदी! ठंडा पानी देना, फिर पानी पीकर घर लौट जाता है। मासूम चेहरा, हाथ-पैर सूखे हुए तथा पेट फूला हुआ यह किशोर एचआईवी पीड़ित है, जो अब सिर्फ समाज के रहमोकरम पर जीवित है। प्रशासनिक व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास इसकी सुध लेने का समय भी नहीं है।
बलजीत के मां व बाप एचआईवी से पीड़ित थे, जिनकी मौत हो गई। सामाजिक संस्था की मदद से पढ़ने योग्य एक भाई व दो बहनों को एसओएस बालग्राम में भर्ती कराया गया है, लेकिन अब बलजीत [काल्पनिक नाम] जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। बलजीत के खाने-पीने की तो व्यवस्था जैसे-तैसे हो जाती है, लेकिन उसकी जिंदगी कैसे संवरे, वह कैसे स्वस्थ जीवन जिए, इस सवाल का जवाब पड़ोस के लोगों के पास भी नहीं है। दो दिन से बलजीत की हालत भी बहुत बिगड़ी हुई है।
तेज बुखार से पीड़ित बलजीत की मानसिक स्थिति भी बिगड़ती नजर आ रही है। गर्मी में भी वह अपने घर का दरवाजा बंद कर कोने में अंधेरे में कंबल लेकर लेटता है। यह हकीकत है चार नंबर निवासी उस किशोर की, जो अब बिल्कुल तन्हा है।
वैसे एक ओर सरकार लोगों के स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। एचआईवी एवं एड्स नियंत्रण के लिए केंद्र व राज्य सरकार के अरबों रुपये खर्च किए जा रहे है। इसके बावजूद आज भी ऐसे कई परिवार व लोग है, जिनका जीवन रोगग्रस्त होने के बावजूद राम भरोसे चल रहा है।
एनआईटी के चार नंबर क्षेत्र के बलजीत के परिवार की हकीकत इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग की नजर में गरीब, बेसहारा व मजबूर लोगों के जीवन की कोई अहमियत नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5455102.html

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